Wednesday, April 29, 2009

बेरोजगारी और सुरक्षा होंगे मुसलमानों के मुद्देः शेरवानी


पूर्व केंद्रीय मंत्री और बदायूं लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी सलीम इकबाल शेरवानी से कुबूल अहमद की हुई बातचीत के अंश-
इस बार के आम चुनाव में मुस्लिम मतदाताओं का रुझान किस ओर है।

मेरे हिसाब से देश में एकमात्र धर्मनिरपेक्ष राष्टीय पार्टी कांग्रेस है। इसके लिए मुस्लिम मतदाता मतदान करेंगे। कांग्रेस के ही पक्ष में मतदान करने के लिए मैं मुसलमानों को एकजुट करुंगा।
किन मुददों पर मुस्लिम मतदाताओं मतदान करेगा।
मुसलमानों के सामने सबसे बड़े मसले बेरोजगारी ओर सुरक्षा है। इस बार मुस्लिम मतदाता इन्हीं दो मुददों पर केंद्रित रहेंगे और अपना मत भी डालेंगे। मैं कांग्रेस में होने के नाते मैं अपनी पार्टी में इन दोनों मुददों को रखूंगा और इसके लिए काम करुंगा।
इस बार के चुनाव में कई मुस्लिम जमातें मैदान में हैं। इस पर आपकी राय क्या है।
इन जमातों के सामने आने की कुछ वजहें हैं। जब इन लोगों की बातें नहीं सुनी गई तो ये लोग ख्ुाद लामबंद हुए और अपनी जमता के सामने आए। कहने का मतलब कि ये पार्टियां बेवजह नहीं है। मिसाल के तौर पर बटला हाउस मुठभेड़ के बाद जब आजमगढ़ के लोगो की बात नहीं सुनी गई तो उलमे काउंसिल का गठन हो गया। भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और यहां सभी के मसलों को सुनना और सुलझाया जाना चाहिए।
इन मुस्लिम जमातों का सियासी असर क्या होगा।
अगर मुस्लिम जमातें आती हैं तो निश्चित तौर पर मुस्लिम मतों को धु्रवीकरण होगा। इसका फायदा दूसरे दल उठाएंगे। इससे मुसलमानों को फायदा नहीं हाने वाला।
आपने सपा क्यों छोड़ी।
मै यह बात साफ कर दूं कि सपा को मैंने नही बल्कि सपा ने मुझे छोडा है। जब मुझे यह न्यूज चैनलों और समाचार पत्रों से खबर मिली कि मेरा टिकट कट गया तो मैं अपने लोकसभा क्षेत्र के लोगों से राय लेने के बाद कांग्रेस में शामिल हुआ। कांग्रेस मेरा पुराना घर है।
कल्याण और मुलायम की दोस्ती का क्या असर होगा।
देश में मुसलमानों के अंदर बाबरी मस्जिद का दर्द हमेशा रहेगा और कल्याण को देखने के बाद वह दर्द ताजा हो उठेगा। कल्याण सिंह के सपा के साथ आ जाने से मुलायम को मुस्लिम मतों के नजरिए से भारी नुकसान होने वाला है।

Saturday, April 25, 2009

आजमगढ़ का कामरान


मैं जब आजमगढ़ में था तब वहां नाइट मैच देखने का बहुत शौक था। वहां मेरे कस्बे में नाइट मैच तीन दिनों तक चलता था। हम लोग तीनों दिन यह मैच रात भर जागकर देखते थे। उसी दौरान वहां नवादा गांव की टीम मैच खेलने आया करते थी। उसी टीम में एक गंेदबाज था कामरान खान।
आज वही कामरान महान गेंदबाज शेन वार्न की आंखों के तारे हो गए हैं। कामरान की कामयाबी पर मैं सिर्फ इसलिए नहीं खुश हूं कि वह आजमगढ़ के हैं बल्कि मेरी खुशी इसलिए भी ज्यादा है कि वह मुफलिसी से निकलकर इस मुकाम तक पहुंचे हैं। उन्हें देखकर तब और भी अच्छा लगता है जब मैं यह सोचता हूं कि मेरे कस्बे के निकट एक खेत में बनी पिच से निकलकर एक लड़का डरबन के मैदान तक जा पहुंचा है।
वैसे आईपीएल की राजस्थान राॅयल्स टीम में कामरान का खेलना किसी सपने के सच होने जैसा जरूर है। मैं आजमगढ़ की सरजमीं पर पैदा हुआ हंू इसलिए पूरे यकीन के साथ कह सकता हूं कि वहां हजारों ऐसे लड़के हैं जिनकी आंखों में कामरान जैसे ही सपने पल रहे हैं। अब कामरान ने उनके सपने देखने की ताकत को और भी मजबूत बना दिया है।
मुझे हमेशा इस बात की तकलीफ रहती कि यहां बहुत सारे लोगों के मन में आजमगढ़ की छवि सिर्फ आतंकवाद और अपराध के ईर्द-गिर्द है। कामरान जैसे नौजवानों ने कई मायनों में उस छवि को झुठलाया है और लोगों को मेरे जिले के बारे में फिर से सोचने पर मजबूर किया है।

Wednesday, April 22, 2009

चावेज की नयी चाहत


वेनेजुएला के राष्ट्रपति हुगो चावेज अमेरिका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बराक ओबामा के दीवाने हो हैं. ऐसा लगता ही नहीं की यह वाही चावेज हैं जो कुछ महीनो पहले तक अमेरिका और उसकी नीतिओं को जमकर कोसते थे. हाँ यह बात भी सही है की चावेज साहब उस वक्त के अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश पर ज्यादा बरसते थे.
सवाल यह है की ओबामा के आने से अमेरिका की उन नीतियों में कितना बदलाव आया है जिन पर चवेज आग बबूला रहते थे. अगर गौर करें तो अमेरिका और बुश की विदेश नीति को लेकर ही चावेज ज्यादा आक्रोशित थे. इसके साथ ही एक बात और अहम् है की ओबामा के समय में अमेरिका की विदेश निति में कोई चमत्कारिक बदलाव नहीं है. फिर चावेज को ओबामा इतना क्योँ सुहाने लगे हैं?
क्या चावेज की बुश से कोई व्यक्तिगत खुन्नस थी या फिर ओबामा के व्यक्तित्व पर वह कुछ इस कदर निहाल हो गए हैं की उनको अमेरिका दिल के करीब लगने लगा है. अब कोई हैरत न होगी की चावेज का व्हाइट हाउस तक आना जाना धड़ल्ले से शुरू हो जाये. हम तो यही कहेंगे की सलामत रहे यह नया दोस्ताना..

Friday, April 17, 2009

फिर कब आएंगे



चिट्टी पत्री ख़तो किताबत के मौसम


फिर कब आएंगे?


रब्बा जाने,


सही इबादत के कब मौसम


फिर कब आएंगे?


चेहरे झुलस गये क़ौमों के लू लपटों में


गंध चिरायंध की आती छपती रपटों में


युद्धक्षेत्र से क्या कम है यह मुल्क हमारा


इससे बदतर


किसी कयामत के मौसम


फिर कब आएंगे?


हवालात सी रातें दिन कारागारों से


रक्षक घिरे हुए चोरों से बटमारों से


बंद पड़ी इजलास


ज़मानत के मौसम


फिर कब आएंगे?


ब्याह सगाई बिछोह मिलन के अवसर चूके


फसलें चरे जा रहे पशु हम मात्र बिजूके


लगा अंगूठा कटवा बैठे नाम खेत से


जीने से भी बड़ी


शहादत के मौसम


फिर कब आएंगे?


-- नईम


सौजन्य :http://www.anubhuti-hindi.org/

Thursday, April 9, 2009

जरनैल के जूते का असर


एक निजी अखबार के पत्रकार जरनैल सिंह ने चिदंबरम साहब पर जूता क्या फेंक दिया देश की सियासत में हड़कंप मच गई। कांग्रेस पार्टी पर इस जूते का असर कुछ ज्यादा ही देखा गया। पार्टी जरनैल के जूते का संकेत समझ गई कि यह जूता चिदंबरम साहब पर नहीं बल्कि जगदीश टाइटलर और सज्जन कुमार पर फेंका गया था।
टाइटलर और कुमार का टिकट काटकर पार्टी ने जूते के असर को पुख्ता कर दिया है। लोग कुछ भी कहें एक पत्रकार के जूते ने अपना दम दिखा ही दिया।