Saturday, February 28, 2009

प्रभाकरन का पटाक्षेप?


अनवारूल हक


भारत के पडोस से दहशत का घना कोहरा अब लगभग छंट चुका है। यह कोहरा लिबरेशन टाइगर्स आफ तमिल ईलम यानी लिटटे का था। अभी यह पूरे विष्वास के साथ नहीं कहा जा सकता कि आतंकवाद का पर्याय लिटृटे पूरी तरह तबाह हो चुका है लेकिन इतना तय है कि वेलुपिल्लई प्रभाकरन के इस ख्ंाूखार संगठन को कोई चमत्कारिक बैषाखी ही सहारा दे सकती है।


अगर लिटटे की दुर्दषा हुई है तो उसका पूरा श्रेय श्रीलंका की सरकार और वहां की सेना को जाता है। सेना ने तमिल विद्रोहियों के हर किले को भेदते हए उन्हें खात्मे के आखिरी छोर पर पहंुचा दिया है। बस अब श्रीलंकाई सरकार ही नहीं वरन पूरी दुनिया को उसी पल का इंतजार है जब खंूखार प्रभाकरन सेना की गिरफत में होगा।


श्रीलंकाई सेना को जो कामयाबी अब मिली है उसका इंतजार 27 वर्षों से था। आज से तकरीबन ढाई दषक पहले ही प्रभाकरन ने लिटटे जैसे आतकवादी संगठन की बुनियाद रखी थी। इसके बाद से प्रभाकरन और उसके संगठन का जो आतंकी तांडव शुरू हुआ उसनी बर्बादी की ढेरों इबारतें लिख दीं। परंतु षायद अब प्रभाकरन और उसके संगठन के दिन पूरे हो चुके हैं।


श्रीलंकाई सेना ने लिटृटे की राजनीतिक राजधानी किलिनोच्चि पर कब्जा जमा लिया था और अब तमिल विद्रोहियों के आखिरी गढ मुल्लैतिवु को अपने कब्जे में ले चुकी है। जानकारों की माने तो अब लिटृे का अंत हो चुका है। लिटृटे का सरगना प्रभाकरन अपनी जान बचाने के लिए रास्ते तलाष रहा है।


दुनिया में चंद लोग हो सकते हैं जो प्रभारकन के नापाक और अमानवीय मंसूबे को सही ठहराते हैं। लेकिन बहुतायत ऐसे हैं जो प्रभाकरन की दरिंदगी को षायद ही भूल पाएं। खासकर हम भारतीय जिनका एक बेहतरीन नेता इसी प्रभाकरन ने छीन लिया। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ही हत्या की वजह से करोडंो भारतीयों के दिल में जो टीस सालों पहले लगी थी वह आज भी बरकरार है।


प्रभाकरन ने वर्ष 1991 में मानव बम का उपयोग करते हुए राजीव की हत्या करवा दी थी। चेन्नई के उच्च न्यायालय पहले ही प्रभारकन को मौत की सजा सुना चुका है। राजीव गांधी की हत्या पर वर्ष 2006 में लिटृटे ने माफी मांगी थीं। लेकिन सवाल यह है कि क्या प्रभाकरन और उसके संगठन का जुर्म माफी के लायक हैं। इसका उत्तर सर्वथा ना में होगा।


प्रभाकरन और उसके संगठन की कुछ नापाक करतूतों पर गौर करना जंरूरी है। राजीव गांधी की हत्या से अलग भी प्रभारकन ने कई जुर्म किए हैं जिनसे किसी भी आदमी रूह कांप जाए। श्रीलका के पूर्व राष्टपति रणसिंहे प्रमदासा की की हत्या को षायद श्रीलंकावासी कभी भूल न पाएं। एक मई, 1993 को कोलंबों में मानव बम के जरिए प्रभारकन के आतंकवादियों ने प्रेमदासा की निर्मम हत्या कर दी थी।
इसके अलावा लिटटे ने हजारों लोगों को आतंकवादी वारदातों के जरिए मौत के घाट उतार दिया। तमिल संघर्ष के नाम हजारों मासूम बच्चों के हाथों में हथियार थमाने का गुनाहगार भी प्रभाकरन ही है। दुनिया के सभी संगठन और देष भी बार-बार यह कहते रहे कि तमिल विद्रोहियों ने नाबालिगों को बंदूक थमा दिया लेकिन पहले सवाल यह था कि लिटटे पर किसी की नकेल नहीं थी और वह मजबूत भी था। आज हालात बदलें हैं तो इसमें कोई दो राय नहीं कि बडी संख्या में बच्चे हथियार छोडकर समाज की मुख्यधारा में जुडेंगे।


प्रभारकन की गुनाह की पोटली हाल के दिनों में और भी भारी हो गई है। किलिनोच्चि में जब उसे पराजय मिलने लगी तो वह अपने आखिरी गढ मुल्लैतिवु की ओर भागने लगा। लेकिन अपने साथ अपनी आतंकी लष्कर के साथ मासूम नगरिकों को भी लेता चला गया। इसका मतलब यह नहीं था कि वह तमिल नागरिकों से हमदर्दी रखता है। इसका सीधा मतलब यह है कि वह नागरिकों को अपनी ढाल पहले भी बनाता था और आज भी बना रहा है।


अंतर्राष्टीय रेडक्रास समिति ने हाल ही में कहा कि मुल्लैतिवु के जंगलों सैकडो तमिल नागरिक मारे गए हैं और हजारों की संख्या में फंसे हुए हैं। मुल्लैतिवु में नागरिकों के मारे जाने या फंसे होने की वजह भी प्रभारकन और उसके साथी हैं। प्रभारकन और उसके साथी नागरिकों को अपने साथ जंगलों में लेकर इसलिए गए कि श्रीलंकाई सेना का बढता कदम रंक जाएगा। हांलाकि ऐसा नहीं हुआ। कारण भी यही था कि सेना की कार्रवाई में नागरिका भी मारे गए। इसके लिए सेना की भी आलोचना हो रही है।
अब सवाल यह है कि हजारों की हत्या का जिम्मेदार प्रभारकन श्रीलंका में ही है या कहीं भाग गया है। लिटेटे की ओर से पिछले दिनों एक बयान जारी कर कहा गया था कि प्रभारकन श्रीलंका में है। मीडिया की अन्य खबरों में कहा गया है कि प्रभारकन अपने परिवार के साथ समुद्री रास्ते के जरिए इंडोनेषिया भागने की फिराक में है।


श्रीलंकाई सरकार का अपनी सेना का यही आदेष है कि प्रभारकन को जिंदा या मुर्दा पकडा जाए। सेना का कहना है कि प्रभारकन के भागने के सभी रास्ते बंद कर दिए गए हैं। प्रभारकन को जानने वाले कहते हैं कि प्रभारकन इतनी आसानी से हार नहीं मानने वाला है। उसके संगठन की ओर से भी कहा गया था कि प्रभाकरन का हुक्म हैं कि सेना के गिरपफत में जाने की बजाय उसके साथी उसे गोली मार देंगे।


गौरतलब है कि दुनिया इसी ओर देख रही ंहै प्रभाकरन का आतंकी साम्राज्य अब खत्म होगा और श्रीलंका के तमिलों समेत सभी नागरिक चैन से जी सकेंगे। अगर वाकई ऐसा होता है तो श्रींलका के इतिहास में यह मील का पत्थर साबित होगा। यह बात भारत के सामरिक हित में भी होगी।