Tuesday, August 25, 2009

जल रही लंका के रावण

पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह अब भाजपा के नहीं रहे। इस दक्षिणपंथी पार्टी ने उन्हें एक झटके में पराया कर दिया। पार्टी की ऐसी बेरुखी का अंदेशा तो भारतीय सेना में अपनी सेवाएं दी चुके जसंवत को हरगिस नहीं रहा होगा। उन्होंने अपने जज्बातों को बयां करने का अदम्य साहस दिखाया और खिसयाई पार्टी ने उन्हें एक झटके में दूध से मक्खी की माफिक निकाल फेंका।

जसवंत के जेहन में यह चल रहा होगा कि जिस पार्टी के लिए उन्होंने 30 साल दिए उसने उन्हें 30 सेकेंड में ही बेगाना कर दिया। यह बात उन्होंने शिमला में कह भी दी। कभी वाजपेयी के हनुमान करार दिए गए जसवंत अब रावण हैं।

अब बेचारे जसवंत जी क्या करें। उनके राम यानी वाजपेयी जी का अब ‘रामराज’ नहीं रहा जहां वह हनुमान हुआ करते थे। वैसे ·भाजपा के हनुमान रहे जसवंत ऐसा कुछ किया भी नहीं किया जिसे कोई राजनीतिक दल सीधे तौर अनुशासनहीनता मान ले। न तो उन्होंने बंगारू लक्ष्मण की तरह रुपये के पैकेट लिए और नहीं उमा भारती की तरह सीधे अपने नेताओं को लताड़ लगाई। फिर आखिर एक किताब के बिना उन पर कार्यवाही क्यों कर दी गई?

वैसे जसवंत जिस लन्का के रावण बन बैठे, अब उसी में आग लग गयी है। आग लगाने वाले कहीं दूर देश से आए हनुमान नहीं बल्कि अपने ही लोग हैं। अरुण शौरी हों या सुधीन्द्र कुलकर्णी सबकी पूँछ में आग लगी हुई है। अब सम्भव है की जसवंत को रावण बनाकर निकलने वाले लोग ही न इस आग के शिकार हो जायें ।

जो पार्टी सबसे पहले आंतरिक लोकतंत्र की बात करती है वह उस बात को नहीं पचा पाई जिससे उसका सीधे कोई सरोकार नहीं था। महज विचारधारा पर आंच के नाम पर एक कद्दावर नेता की तिलांजलि दे दी गई।

खैर , जसवंत ने उसी सच को बढ़चढ़ कर कह दिया जिसे लोहिया और मौलाना आजाद जैसे नेता पहले ही कह चुके थे। उन्होंने कहीं यह नहीं कहा कि जिन्ना भारत के बंटवारे के लिए जिम्मेदार नहीं थे। हां उन्होंने इसकी सामूहिक जिम्मेदारी की बात जरूर कही है।इतिहास पर बहस न करने की सीख देने वालों को यह सोचना होगा कि विज्ञान में कोई बात परमस्थायी नहीं होती तो फिर अतीत के दस्तावेजों पर बहस क्यों नहीं हो सकती।

सवाल है कि क्या इतिहास में त्रुटियां नहीं हो सकतीं? सबसे अहम बात यह है कि पुस्तक में लेखक का विचार निजी होता है तो उससे पार्टी इतनी आहत क्यों दिखती है?चलिए मान लेते हैं कि जसवंत ने भाजपा की विचारधारा को तार-तार कर दिया है। तो फिर आडवाणी के जिन्ना प्रेम में कौन सा अनुराग छुपा था जिन्हें जसवंत की माफिक कुर्बानी नहीं देनी पड़ी। इसी पार्टी को आडवाणी के खिलाफ कठोर कार्यवाही करने में पसीने छूट गए थे।

ऐसे में भाजपा जैसी तथाकथित लोकतांत्रिक पार्टियों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का क्या मतलब है। पार्टी यही चाहती है कि उसके साथ जुड़ा हर व्यक्ति अपने विचारों और सोच को कहीं दफन कर दे। जो उसके ·भाए उसी बात को हर जगह व्यक्त किया जाए। जज्बातों के कद्र की कोई बात नहीं। अब ऐसी पार्टी का चिंतन बैठक करना लाजमी लगता है।

Sunday, August 16, 2009

टीम में ‘दीवार’ की वापसी


भारतीय क्रिकेट के महान खिलाड़ियों में शुमार हो चुके राहुल द्रविड़ की टीम में वापसी से साबित भी हो गया कि चयनकर्ताओं की नजर में वह आज भी एक ‘दीवार’ हैं।

चयनकर्ताओं ने मुंबई के युवा बल्लेबाज रोहित शर्मा को बाहर का रास्ता दिखाया और इसके बाद बेंगलुरू के द्रविड़ की टीम में वापसी हुई। उनकी यह वापसी दो वर्षों बाद हुई। उन्होंने 14 अक्टूबर, 2007 को अपना आखिरी मैच खेला था।

द्रविड़ का आखिरी 10 एकदिवसीय मैचों में प्रदर्शन बेहद साधारण ही रहा। उन्होंने अपने आखिरी 10 मैचों में महज 136 रन बनाए जिसमें सिर्फ एक अर्धशतक शामिल था। यही वजह रही कि उन्हें टीम में वापसी के लिए इतना लंबा इंतजार करना पड़ा।

द्रविड़ की वापसी के पीछे एक बड़ी वजह इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) में उनका शानदार प्रदर्शन रहा है। टीम में उनकी वापसी को मध्यक्रम में एक मजबूती के तौर पर देखा जा रहा है। ‘श्रीमान भरोसेमंद’ और ‘मिस्टर कूल’ जैसे कई नामों से पुकारे जाने वाले द्रविड़ के लिए बल्लेबाजी क्रम में तीसरा स्थान सटीक माना जाता है।
आज से 13 साल पहले अंतरास्ट्रीय क्रिकेट में कदम रखने वाले द्रविड़ मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर के बाद दूसरे ऐसे भारतीय क्रिकेट हैं जिनके नाम टेस्ट और एकदिवसीय दोनों में 10,000 से अधिक रन दर्ज हैं।

द्रविड़ ने अब तक 333 एकदिवसीय मैचों में 39.49 की बेहतरीन औसत से 10,585 रन बनाए हैं जिसमें 12 शतक और 81 अर्धशतक शामिल हैं। उन्होंने 134 टेस्ट मैचों में 52.53 की औसत से 10,823 रन बनाए है। इसमें उन्होंने 26 शतक भी जड़े हैं।

Wednesday, August 12, 2009

इस्लाम और चार शादी

पिछले दिनों विधि आयोग ने विधि मंत्रालय को एक रिपोर्ट सौंपी है जिसमें कहा गया है कि एक से अधिक विवाह करना इस्लाम के मूल्यों के विपरीत है। रिपोर्ट में यहां तक कहा गया है कि चार शादी करने को लेकर लोग एक तरह की गलतपफहमी के शिकार हैं। इस रिपोर्ट पर भारत के कुछ उलेमा और इस्लामी संघठन अपना विरोध जता रहे हैं।
सवाल यह है कि किसने ये आजादी दे दी कि कोई भी शख्स चार और औरतों पर अपनी हूकुमत चलाएगा। मैं इस वाक्य इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि चार शादी की वकालत करने वाले लोग सिर्फ औरत को सामान के सरीखे देखते हैं और उनका यही मानना होता है कि वे बादशाह हैं और जिसके साथ वे निकाह कर लेंगे वह उनकी गुुलाम हो जाएगी। इसलिए मैं इसे शादी नहीं बल्कि शादी के नाम पर किसी इंसान पर हूकुमत करने की एक प्रक्रिया मानतहंूं।
मैं इतना जरूर मानता हूं कि मुझे किसी उलेमा के माफिक इस्लाम की समझ और जानकारी नहीं है। हां मैं जिस इस्लाम को जानता और मानता हूं उसमें औरतों के लिए पूरा सम्मान और हक है। परंतु हमारे कुछ उलेमा औरतों को मर्दों की तुलना में कम आकंते हैं। ऐसा मेरा अनुभव भी रहा है।
अभी हाल ही एक हाफिज से मेरी मुलाकात हुई। उन्होंने बातों-बातों में कहा कि औरत को हर हाल में अपने मर्द यानी पति के हुक्मों की फरमाबरदारी करनी चाहिए और उसका फर्ज अपने पति की सेवा करना है। मेरा उनसे उलट सवाल था कि क्या मर्द को अपनी बीवी की बात माननी चाहिए या फिर उसे बीबी की खिजमत नहीं करनी चाहिए? क्या ऐसा करना मर्दों के मर्दानगी के खिलाफ है? मेरी इन बातों को सुनकर उन्होंने कहा कि आप औरतपरस्त हैं।
बहरहाल, इस्लाम का हवाला देकर जो लोग चार शादियों की वकालत करते हैं उन्हें जरा पैगम्बर की जिंदगी के हर पहूल पर गौर करना चाहिए। यह बात सबकों मालूम होगी कि जब पैगम्बर ने पहली शादी की तो वह महज 21 साल के थे। उन्होंने पहली शादी उस विधवा से की थी जिसकी उम्र तकरीबन 40 के आसपास थी। सवाल यह कि क्या हमारे ये कुछ उलेमा विधवा विवाह की वकालत करतें हैं या खुद ऐसी कोई पहल करने की हिम्मत करते हैं।
ऐसे कई सारे इस्लाम के पहूल हैं जिनके हवाले से इन तथाकथित मर्दों की तथाकथित मर्दानगी को बखूबी झकझोरा जा सकता है। उनको यह समझना होगा कि ये ही नहीं बल्कि औरतें भी इन पर हूकुमत कर सकती हैं। जहां तक चार शादी की बात है तो इस पहलू पर इन लोगों को अपने ज्ञान को थोड़ा बढ़ाने की जरूरत है।

Monday, August 10, 2009

स्वाइन फ्लू और बचाव


एच1एन1 वायरस जो स्वाइन फ्लू-ए के नाम से जाना जा रहा है आम तौर पर सूअरों पर इसका असर देखा गया है। इससे पीड़ित व्यक्ति को बुख़ार, आलस आना, कफ़ बनना, भूख न लगना, पीठ में दर्द, शरीर में दर्द और कमज़ोरी जैसी शिकायतें होती हैं।


इसके अलावा नाक बहना, गले में ख़राश तथा उल्टी−दस्त की शिकायत भी होती है।एच1एन1 वायरस के शिकार व्यक्ति को सांस लेने में तकलीफ़, सीने या पेट में दर्द और बेहोशी जैसी स्थिति होती है और मरीज़ खुद को असमंजस की स्थिति में पाता है। इसी तरह, पांच साल से कम बच्चों में दूसरे वायरल फ़ीवर की तरह ही देखना चाहिए कि कहीं बच्चे को अचानक तेज़ बुख़ार तो नहीं हुआ या गले में दर्द, सांस लेने में तकलीफ़, शरीर में नीलापन, अत्यधिक बेहोशी जैसी स्थिति और चिड़चिड़ापन तो नहीं है।


शरीर पर रैश दिखना भी स्वाइन फ्लू होने का लक्षण है।अब आपके लिए ये जानना भी ज़रूरी हो जाता है कि स्वाइन फ्लू से बचने के लिए किस तरह की एहतियात बरतने की ज़रूरत है। सबसे पहले तो इससे बचाव के लिए आपको एक खास तरह के मास्क की ज़रूरत होगी। ये एक आम मास्क से अलग है। इसका नाम है एन 95। ये मास्क हवा में फैले कीटाणुओं को फिल्टर कर सकता है।ये म़ॉस्क अस्पताल में जांच के लिए जाते समय या अस्पताल में वेटिंग रूम में पहनना बेहद ज़रूरी है।


इसका अलावा अगर आपने किसी ऐसे व्यक्ति को छुआ है जिसे कफ़ और जुकाम हो तो अपने हाथ ज़रूर धोएं। खाने के पहले और खाने के बाद हाथ धोएं…जिन को सर्दी या ज़ुकाम भी हुआ तो वे कोशिश करें कि सावर्जनिक जगहों पर न जाएं।कोई स्वाइन फ्लू का मरीज़ है तो उसे अलग कमरे में रखें।कई अस्पतालों में मरीज़ों की मदद के लिए लिए हरसंभव कदम उठाए गए हैं.


अगर स्वाइन फ्लू के लक्षण मिलें तो आप दिल्ली के 13 अस्पतालों में जा सकते हैं। कुछ अस्पतालों के नाम इस प्रकार हैं : एयरपोर्ट हेल्थ आफिस, राम मनोहर लोहिया अस्पताल, लोकनायक जयप्रकाश, बाड़ा हिंदू राव अस्पताल, जीटीबी अस्पताल, डीडीयू अस्पताल, पीतमपुरा का बीएम अस्पताल औरर पूर्वी दिल्ली का लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल।


उधर, मुंबई में परेल स्थित कस्तूरबा अस्पताल, घाटकोपर के राजावाड़ी अस्पताल, बोरीवली के भगवती अस्पताल, मुलुंड स्थित एमटी अग्रवाल अस्पताल, बांद्रा के भाभा अस्पताल, गोरेगांव के सिद्धार्थ अस्पताल में जांच करवाने मरीज़ जा सकते हैं।


Source : NDTV India

इस्लाम और एक से अधिक शादी

अब्दुल वाहिद आज़ाद,
बीबीसी हिंदी डॉट कॉम

इस्लाम में एक से अधिक शादी करने के मामले में विधि आयोग की ताज़ा रिपोर्ट की उलेमा ने कठोर आलोचना की है और इसे इस्लामी शिक्षा और शरीयत के विरुद्ध क़रार दिया है.
ग़ौरतलब है कि विधि आयोग ने विधि मंत्रालय को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि दूसरी शादी करना ' इस्लाम के सच्चे क़ानून की आत्मा के ख़िलाफ़ है. साथ ही जो ये आम समझ है कि भारत में मुसलमानों का क़ानून उन्हें चार पत्नियाँ रखने की इजाज़त देता है, ग़लत है. '
रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि कई मुस्लिम देशों जैसे तुर्की और ट्यूनीशिया, जहाँ बहुपत्नीत्व पर प्रतिबंध है ,वहीं मिस्र, सीरिया, जॉर्डन, इराक़, यमन, मोरोक्को, पाकिस्तान और बांगलादेश में दूसरी शादी प्रशासन या अदालत के अधीन है.
विधि आयोग की रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए भारत में इस्लामी शिक्षा के सबसे बड़े केंद्र दारुल उलूम देवबंद के उपकुलपति मौलाना ख़ालिद मद्रासी का कहना है कि आयोग की रिपोर्ट मिथ्या पर आधारित है जो ग़लत और मज़हब में दख़ल के बराबर है.
उनका कहना है, " हम केवल भारतीय संविधान के अधीन हैं और संविधान अपने-अपने धर्म को मानने की आज़ादी देता है. एक से अधिक शादी करना मुसलमानों का धार्मिक अधिकार है और हम आयोग की रिपोर्ट की निंदा करते हैं. "
हालाँकि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की महिला सदस्या हसीना हाशीया विधि आयोग की राय को सही मानती हैं. उनका कहना है कि आयोग की बात इस्लामी शिक्षा के अनुरुप है.
वे कहती हैं, " इस्लाम में कुछ ऐसी विशेष स्थितियों में ही एक से अधिक शादी करने की इजाज़त दी गई है जैसे विधवा की संख्या काफ़ी बढ़ गई हो और इससे समाज में बुराई फैलने का डर हो. "
हाशीया कहती हैं कि भारत में दूसरी शादी करने के मामले प्रशासन के अधीन होने चाहिए. जैसे कई मुस्लिम देशों में हैं, लेकिन पूरी तरह से प्रतिबंध नहीं होना चाहिए, क्योंकि वो भी इस्लमी शिक्षा के विरुद्ध है.
मामले की गहराई पर बात करते हुए जामिया मिल्लिया इस्लामिया के इस्लामिक स्टडीज़ विभाग के प्रोफ़ेसर जुनैद हारिस कहते हैं कि इस्लाम में एक से अधिक शादी की इजाज़त ज़रूर दी गई है लेकिन न इसे आवश्यक बनाया गया है और न ही इसे बढ़ावा देने की बात कही गई है, बल्कि इसके लिए कुछ शर्तें भी रखी गई हैं.
उनका कहना है, " इस्लाम में एक से अधिक शादी की इजाज़त उसे दी गई है जो अपने बीवियों के बीच इंसाफ़ और उनके अधिकार को पूरा कर सकता है लेकिन इस्लाम इस बात की इजाज़त नहीं देता कि जो चाहे इस सुविधा का ग़लत इस्तेमाल करे. "
जुनैद हारिस स्वीकार करते हैं कि भारत में एक से अधिक शादी करने वाले अधिकतर लोग इस्लाम के सच्चे क़ानून की आत्मा का पालन नहीं करते हैं और कुछ तो अपने पहली पत्नी और उससे पैदा होने वाले बच्चों को भी छोड़ देते हैं जो इस्लाम के विरुद्ध है.
लेकिन कुछ उलेमा न सिर्फ़ विधि आयोग की रिपोर्ट से नाराज़ है बल्कि इसे शरीयत की ग़लत व्याख्या भी क़रार दे रहे हैं.
धार्मिक संगठन जमीअत उलेमा हिंद के सचिव मौलाना हमीद नोमानी ने विधि आयोग की रिपोर्ट पर सख़्त आपत्ति जताते हुए कहा कि ' आयोग को इस बात का अधिकार नहीं हैं कि वो शरीयत की ग़लत व्याख्या करे. '
मैंने यही सवाल समाजशास्त्री इम्तियाज़ अहमद से पूछा कि क्या ये ‘ शरीयत की ग़लत व्याख्या है ’ तो उनका कहना था, “ शरीयत की व्याख्याएं बदलती रहती हैं और एक से अधिक शादी करने की खुली छूट न क़ुरान में है न हदीस में है. ”
तो ऐसी क्या वजह है कि उलेमा बिरादरी आयोग की रिपोर्ट को मज़हब में दख़ल मान रहे हैं , तो इम्तियाज़ कहते हैं, " उलेमा को ऐसे किसी मामले में फेरबदल शरीयत में छेड़छाड़ लगता है क्योंकि वो इसे पहचान का मामला समझ लेते हैं, जबकि पहचान चार शादी करने से नहीं बल्कि अच्छे काम करने से होती है. "
मुसलमानों के एक से अधिक शादी का मामला विवादित रहा है लेकिन भारत सरकार के एक अध्ययन के अनुसार सच्चाई यह है कि इन सबके बावजूद भारतीय मुसलमान देश की दूसरी धार्मिक बिरादरियों से पीछे हैं।
source: बीबीसी Hindi

Tuesday, August 4, 2009

निरूपमा जी आप मेनन मत बनिएगा !


शिवशंकर मेनन अब अतीत की बात हो चुके हैं। उनकी जगह अब निरूपमा राव ले चुकी हैं। अब निरूपमा के सामने कई चुनौतियां हैं जो उनका कड़ा और माकूल इम्तहान लेंगी। शायद वह वैसी एक कोई गलती नहीं होनें देंगी जो मेनन साहब के कार्यकाल के आखिरी दिनों में हो गई।
मैं मेनन साहब की काबिलियत और उनकी निष्ठा पर कोई सवाल खड़े नहीं कर रहा। वह एक काबिल अधिकारी रहे हैं जिनके लिए हमारे दिल में आदर है। उन्होंने कई ऐसी कामयाबियां भी भारत के झोली में डालीं जिनकी हमारी विदेश नीति को भारी दरकार थी। मसलन कि ऐतिहासिक परमाणु करार के साथ उनका नाम इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज हो गया।
परंतु मुझे डर इस बात का है कि कहीं इतिहास उनको एक खलनायक न मान बैठे। शर्म-ंअल-शेख में हम जो गलती कर बैठे उसकी उम्मीद मुझे इसलिए नहीं थी कि मेनन साहब जैसे अधिकारी की मौजूदगी में हमारी विदेश नीति तो जरा भी लचर नहीं हो सकती। परंतु अफसोस कि ऐसा नहीं हुआ। बलूचिस्तान के रूप में ऐसा बिंदु साझा बयान में शामिल किया गया है जो पाकिस्तान का हमारे खिलाफ एक हथकंडा है। डर इस बात का है कि कहीं बलूचिस्तान नाम का एक कलंक हमारे पाक दामन में न लग जाए। खुदा न करे, पर अगर ऐसा हुआ तो अफसोस है कि मनमोहन के साथ मेनन साहब भी खलनायक के रूप में याद किए जाएंगे।
अब नई विदेश सचिव निरूपमा से उम्मीद यही करतें हैं कि वह मेनन साहब की गलती कभी नहीं दोहराएंगी। ऐसा उम्मीद रखना वाजिब भी हैं क्योंकि दक्षिण एशिया में निरूपमा को काम करने का लंबा अनुभव है। उनसे एक उम्मीद यह भी होगी कि उनके रहते ही शर्म-ंअल-शेख की गलती भूल को हमेशा के लिए खत्म कर दिया जाएगा।