tag:blogger.com,1999:blog-77516533030749578542024-03-05T13:37:11.682-08:00अवलोकन....जिन्दगी कुछ और नहीं बस तेरी-मेरी कहानी है.......Avlokanhttp://www.blogger.com/profile/18431353904399972129noreply@blogger.comBlogger37125tag:blogger.com,1999:blog-7751653303074957854.post-28806078574284185732010-06-02T22:35:00.000-07:002010-06-02T22:38:10.522-07:00एक और गुड़िया!संजीव कुमार<br />मुजफ्फरनगर। कभी दो पतियों के बीच फंसी गुड़िया की कहानी मीडिया की सुर्खियां बनी थी। आज कुछ ऐसी ही दास्तां मुजफ्फरनगर की एक महिला रोशन की भी है, जिसके सामने अपने दो शौहरों में एक को चुनने का धर्मसंकट था। पंचायत और धर्मगुरुओं ने उसे पहले पति के साथ रहने की हिदायत दी और इसको मानते हुए रोशन अपने पहले पति के पास लौट गई।<br />यह मामला यहां के मीरापुर कस्बे का है। यहां के निवासी सिराजुद्दीन की पुत्री रोशन का निकाह 11 वर्ष पहले इरशाद के साथ हुआ था। इससे रोशन को दो बेटियां यासमीन व नरगिस हुई। करीब पांच वर्ष बाद इरशाद अचानक लापता हो गया था। काफी खोजबीन के बाद भी जब उसका कोई सुराग नही लगा तो उसके सास-ससुर अपनी बहू व पोतियों को मायके में छोड़ चले गए। रोशन के सुसराल वालों को इस बात आशंका थी कि उनका बेटे की मौत हो गई है।<br />रोशन के मुश्किलों का सिलसिला यही नहीं थमा। मायके लौटने के कुछ दिनों बाद उसके पिता सिराजुद्दीन की भी मौत हो गई थी। इसके बाद कुछ स्थानीय लोगों ने इरशाद को लापता मानकर उसका दूसरा निकाह सहारनपुर के गगोह के गफ्फार के साथ कर दिया।<br />अचानक उसकी वैवाहिक जिंदगी मे नया मोड़ उस वक्त आ गया जब रोशन के भाई आस मोहम्मद को पता चला कि उसका बहनोई इरशाद जीवित है तथा मुरादाबाद के संभल क्षेत्र के आदमपुर गांव मे रह रहा है। इस खुलासे के बाद घर वाले उसे वहां से वापस लेकर आए। उसने बताया कि वह पारिवारिक झगड़े व तनाव के कारण घर से चला गया था।<br />इस मामले पर मीरापुर मस्जिद के मुफ्ती अरशद ने ?दारूल इफ्ता? से फतवा लिया था। इसमें मौलाना बदरूल जमां का कहना था कि रोशन पर उसके पहले शौहर का ही हक बनता है। इस फैसले के बाद रविवार को हुई पंचायत में शामिल लोगों ने फोन से रोशन के दूसरे पति गफ्फार से बातचीत कर उसके पहले पति के पास भेजने की सहमति ले ली।<br />पंचायत के फैसले के बाद उसे इरशाद के पास भेजा गया है। गफ्फार ने अपने लिए कोई फतवा या आपत्ति नहीं मांगा है। बदरूल जमा की ओर से दिए गए फतवे के अनुसार इस्लाम में सात साल तक लापता होने पर ही किसी औरत का दूसरा निकाह जायज होता है। रोशन लगभग ढाई साल से मायके मे है और उसे ?इद्दत? जरूरी नहीं है। ऐसे में गफ्फार से उसका निकाह जायज नहीं है।Avlokanhttp://www.blogger.com/profile/18431353904399972129noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7751653303074957854.post-29272920884235297412010-05-25T01:43:00.000-07:002010-05-25T01:46:22.632-07:00एक प्रेम कहानी ऐसी भी..<p>कहते हैं कि प्यार सभी बंधनों और सीमाओं से परे है। कनाडा में शुरू हुई एक प्रेम कहानी के सुखद अंत ने एक बार फिर इसे सही साबित किया है। इस प्रेम कहानी में इंटरनेट का किरदार बेहद अहम रहा।<br />यह कहानी कनाडाई मूल की मुस्लिम युवती नाजिया काजी और भारतीय मूल के युवक बिजोर्न सिंहल की है। इन दोनों के प्यार की सुखद परणिति से पहले तमाम ऐसी रुकावटें और दिक्कते आईं जो अक्सर बॉलीवुड की फिल्मों में देखने को मिलती हैं।<br />नाजिया और बिजोर्न के बीच कनाडा में पढ़ाई के दौरान प्यार परवान चढ़ा लेकिन जल्द ही इनके प्यार को मानो किसी की नजर लग गई। नाजिया के वालिद काजी मलिक अब्दुल गफ्फार अपनी बेटी के प्यार के रास्ते में आ गए और उसे पूरे तीन साल तक घर में 'बंधक' बनाकर रखा।<br />गफ्फार सऊदी अरब में कार्यरत हैं इसलिए वहां के कानून की मदद से भी वह अपनी बेटी पर बंदिश लगाने में कामयाब रहे। परंतु नाजिया ने इंटरनेट के जरिए अपनी मदद की गुहार लगाई और कनाडा में उसके दोस्तो ने भी उसके समर्थन में अभियान छेड़ दिया।<br />नाजिया के जज्बे और दोस्तों के साथ से उसकी दिक्कतों को मीडिया ने प्रमुखता दी और देखते ही देखते यह प्रेम कहानी कनाडा और सऊदी अरब के अखबारों में छा गई। इसके बाद मानवाधिकार संगठन भी उसके समर्थन में आगे आए।<br />बिजोर्न और नाजिया की सबसे बड़ी जीत उस समय हुई जब इस साल के शुरुआत में दोनों परिवार शादी के लिए राजी हो गए और पिछले सप्ताह यह प्रेमी जोड़ा दुबई में विवाह के पवित्र बंधन में बंध गया।<br />शादी के बाद 24 साल की नाजिया ने कहा, "अब मैं अपने पिता को माफ कर चुकी हूं। वह मुझे खुश देखना चाहते हैं। मेरे माता-पिता मुझे घर बसाते देखना चाहते थे। आज सभी खुश हैं।"<br />उधर, 29 साल के बिजोर्न का कहना है कि अब वह अपने ससुर के साथ सुलह करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि नाजिया से शादी करने के बाद उन्हें बहुत राहत मिली है।</p><p>सौ IANS</p>Avlokanhttp://www.blogger.com/profile/18431353904399972129noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7751653303074957854.post-42367111031113285522010-05-03T22:14:00.000-07:002010-05-03T22:28:19.098-07:00अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में खुफिया शाखा!<strong><span class="">नक्</span><span class="">शब </span>खान</strong><br /><strong>अलीगढ़ :</strong> <a href="http://www.amu.ac.in/">अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय </a>(एएमयू) से जुड़ी एक राज की बात अब यहां हर जुबान पर सुनी जा सकती है कि एएमयू में एक ‘खुफिया शाखा’ है जो छात्रों और शिक्षकों के हर कदम पर पैनी नजर रखती है। यद्यपि विश्वविद्यालय प्रशासन ऐसी किसी भी इकाई के संचालन की बात खारिज करता है। <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhww4N7Mlpkvdbdb-mbQ5gxIeigYpibVtAG6XAHsGwX74WnGpp8g2klNSms7hJySnko1rmjL8dz6mjWPkDhEzRJI6ukbacCOC1Chzh035EY8sKVpczwv1oeebsLx_mUGOhHu4UnH4zM1r13/s1600/amu.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5467281194319523794" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 294px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhww4N7Mlpkvdbdb-mbQ5gxIeigYpibVtAG6XAHsGwX74WnGpp8g2klNSms7hJySnko1rmjL8dz6mjWPkDhEzRJI6ukbacCOC1Chzh035EY8sKVpczwv1oeebsLx_mUGOhHu4UnH4zM1r13/s320/amu.jpg" border="0" /></a><br />एएमयू प्रशासन इतना जरूर स्वीकार करता है, "विश्वविद्यालय में आने वाले बाहरी और असामाजिक तत्वों पर नजर रखी जाती है।"<br />वैसे हाल के कुछ घटनाओं की वजह से ‘स्थानीय खुफिया इकाई’ (एलआईयू) एक फिर खबरों में आ गयी है। पिछले दिनों विश्विद्यालय के कथित समलैंगिक शिक्षक श्रीनिवास रामाचंद्रा से जुड़ी घटना के बाद एलआईयू फिर से चर्चा में आ गया। कुछ लोगों ने इस शिक्षक के घर में कैमरा लगा दिया और फिर उनकी एक फिल्म बना दी। कुछ दिनों बाद ही यह शिक्षक अपने घर में मृत पाए गए।<br />दर्शनशास्त्र विभाग के शिक्षक तारिक इस्लाम का कहना है, "एक शैक्षणिक संस्थान में इस तरह की खुफिया एजेंसी का संचालन करने का तर्क मैं नहीं समझ पाता। सरकार को छोड़ किसी दूसरे संस्थान को दूसरों की जासूसी करने का हक नहीं है।"<br />इस मामले पर केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने बताया, "विश्वविद्यालय में कानून एवं व्यवस्था में बरकरार रखने के लिए कुलपति के पास किसी भी समिति या एजेंसी को गठित करने का अधिकार है। अगर संबंधित एजेंसी का किसी तरह से दुरुपयोग होता है तो इसके लिए कुलपति जरूर जिम्मेदार होगा।"<br />हाल ही में एम.फिल के एक छात्र अफाक अहमद को निलंबित कर दिया गया। उस पर कुलपति पी.के. अब्दुल अजीज को धमकी भरा पत्र भेजने का आरोप था। इस मामले में भी आरोप इसी खुफिया शाखा पर लगे हैं। इस छात्र का आरोप है कि खुफिया शाखा के लोगों ने कुलपति को भजे जाने वाले पत्र पर छात्रावास में उसके जबरन हस्ताक्षर लिए।<br />खुफिया शाखा से जुड़े सवाल पर विश्वविद्यालय के प्रॉक्टर जुबैर खान ने कहा, "हमारे यहां निगरानी करने वाली एक एजेंसी है जो बाहरी और असामाजिक तत्वों पर नजर रखती है।"<br />एएमयू प्रशासन भले ही कुछ दावा कर रहा हो लेकिन सूचना के अधिकार के तहत दायर एक याचिका के जवाब में खुद उसने (विश्वविद्यालय) ने एलआईयू की मौजूदगी की बात कबूल की है।<br /><p></p>Avlokanhttp://www.blogger.com/profile/18431353904399972129noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7751653303074957854.post-38269161507279162202010-05-02T23:08:00.000-07:002010-05-02T23:13:26.552-07:00निरुपमा को न्याय चाहिए<p>निरुपमा के लिए न्याय पिटीशन पर दस्तखत करें। निरुपमा की हत्या इसलिए कर दी गई क्योंकि वह अपनी मर्जी से शादी करना चाहती थी। वर्णव्यवस्था के पुजारियों ने इस अपराध के लिए उसे मौत की सजा दे डाली। पिटीशन पर <a href="http://www.petitiononline.com/n1i2r3u4/petition.html">क्लिक</a> करें। </p>Avlokanhttp://www.blogger.com/profile/18431353904399972129noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7751653303074957854.post-8762669075864787832010-04-09T22:32:00.000-07:002010-04-09T22:40:29.886-07:00सानिया तुमसे शिकायत है..<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiK4TDHESDt5H6_XsDB6cite8YVO7WrwJGi_xX4uKmuImjPqw4Jns9HpN9tYGXHNdi0IWwINhiClGCxAQVglwssc5TS8aYcFuscXHcHFqXf1fVPgKpyzykBxZONKz1_Jn09ilmKcS5d36zS/s1600/-sania1.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5458379078229132450" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 281px; CURSOR: hand; HEIGHT: 320px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiK4TDHESDt5H6_XsDB6cite8YVO7WrwJGi_xX4uKmuImjPqw4Jns9HpN9tYGXHNdi0IWwINhiClGCxAQVglwssc5TS8aYcFuscXHcHFqXf1fVPgKpyzykBxZONKz1_Jn09ilmKcS5d36zS/s320/-sania1.jpg" border="0" /></a> सानिया कभी तुम्हे सेरेना के सामने कोर्ट में रैकेट थामे देखकर बहुत फक्र हुआ था. उस वक्त फक्र महसूस करने की पहली वजह एक भारतीय होने की वजह से थी. परन्तु ख़ुशी इसलिए भी ज्यादा थी कि सानिया तुम उस तबके से आती हो जहाँ ऐसे कई लोग हैं जो खातूनो को सिर्फ परदे कि चादर में लपेटने कि पैरोकारी करते हैं.<br />वैसे तुम्हे कौर्ट में देखकर ख़ुशी सिर्फ मुझे ही नहीं बल्कि मेरे जैसे एक अरब से ज्यादा भारतीयों को भी हुई होगी. लेकिन सानिया बीते कुछ दिनों में ऐसा लगा कि तुम हम सबकी शर्मिंदगी की वजह बन रही हो. ऐसा नहीं कि शोएब या किसी पाकिस्तानी से शादी करने के तुम्हारे फैसले से हमें किसी तरह का ऐतराज़ है. तुम्हे अपनी जिन्दगी के हर फैसले करने का हक़ बिलकुल है. पर किसी महिला के जख्म कुरेदकर तुम्हे अपनी खुशियाँ तलाशने का हक़ बिलकुल नहीं है.<br />अगर तुम्हे पता था कि शोएब ने आयशा से शादी की थी तो तुम शोएब के फरेब की भागीदार क्यों बनी? तुमने क्यों मीडिया के सामने आकर अपनी सहेली और हमवतन आयशा के चरित्र को कटघरे में खड़ा किया? क्या तुम सब जानते हुए भी अनजान थी? अगर सब जानती थी तो तुम्हारे उस दावे का क्या कि 'हम इज्जतदार परिवार से ताल्लुक रखते हैं'.<br />मैडम सानिया अब आप बाहर आकार शोएब की पाकीजगी का बखान क्यों नहीं करती? क्या आपने अब मान लिया कि आप शहजादा शोएब कि दूसरी बेगम हैं? अब क्या करेंगी प्यार की मजबूरी क्या न करवा दे. खैर हमारी शिकायत पर आपको गौर करना चाहिए. शादी के लिए मुबारकबाद. दुआ करेंगे कि आयशा की दास्ताँ आपके साथ न दोहराई जाये.Avlokanhttp://www.blogger.com/profile/18431353904399972129noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7751653303074957854.post-20421336314602520532010-03-19T21:55:00.000-07:002010-03-19T21:59:06.201-07:00जकात से जागी एक गाँव की किस्मत<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgVdp5V9jkhU1QmPtxYkK3dB9UeZmMdkCllSaOHl1bmuNNE8QU2ZKM1E97sBpOwDH-0rrNDJRik5v7gftsJrPJ79vdidfmAd8XD67tqtmm22wdadcTeaXskG3DXHXOMQGFBZ7ll3PCLPPwt/s1600-h/jakat.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5450575953235078130" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 240px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgVdp5V9jkhU1QmPtxYkK3dB9UeZmMdkCllSaOHl1bmuNNE8QU2ZKM1E97sBpOwDH-0rrNDJRik5v7gftsJrPJ79vdidfmAd8XD67tqtmm22wdadcTeaXskG3DXHXOMQGFBZ7ll3PCLPPwt/s320/jakat.jpg" border="0" /></a> पवित्र कुरान में जकात (दान) के महत्व से प्रेरित होकर उत्तर प्रदेश के एक गांव के मुसलमानों ने दान के माध्यम से ही गांव का कायाकल्प कर दिया है। चाहे सड़कों का निर्माण हो या हैंडपंप की व्यवस्था, बिजली के खंभे लगाना हो या स्कूलों की स्थापना, ये सब कुछ आजमगढ़ जिले के सिराजपुर गांव के लोगों ने जकात के माध्यम से कर दिखाया है।<br />गांव के मोहम्मद हलीम ने कहा कि अगर हम लोग राजनेताओं और जनप्रतिनिधियों के चक्कर काटते तो गांव में विकास के नाम पर कुछ भी संभव नहीं होता। चंदे के जरिए ही हमने गांव में सड़कों का निर्माण, पेयजल के लिए हैंडपंप, बच्चों के लिए स्कूल सहित अन्य बुनियादी जनसुविधाएं दुरुस्त की है।<br />बुनियादी जनसुविधाओं के बाद सिराजपुर गांव के लोग अब दान के माध्यम से ही एक पुल का निर्माण कर रहे हैं, जिसका निर्माण हो जाने से आजमगढ़ शहर व अन्य कस्बों से गांव का आवागमन सुगम हो जाएगा।<br />गांव के पूर्व प्रधान एहसानुल हक कहते हैं कि हम लोग चंदे से धन एकत्रित कर तमसा नदी पर एक पुल का निर्माण कर रहे हैं। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इस पुल के निर्माण के लिए हमने करीब 60 लाख रुपये एकत्र कर लिए हैं।<br />उन्होंने कहा कि पुल के निर्माण का काम शुरू हो गया है। हम लोग उस दिन का इंतजार कर रहे हैं, जिस दिन यह पुल बनकर तैयार हो जाएगा।<br />ग्रामीणों के मुताबिक करीब 30 मीटर लंबे इस पुल का निर्माण हो जाने के बाद गांव जिला मुख्यालय के साथ-साथ तमसा नदी के उस पार के महत्वपूर्ण कस्बों से सीधा जुड़ जाएगा और आवागमन सुगम हो जाएगा।<br />ग्रामीण इश्तियाक अहमद कहते हैं कि व्यापार की दृष्टि से भी यह पुल बहुत महत्वपूर्ण होगा। खासकर किसानों और पटरी बाजार पर दुकानें लगाने वाले छोटे व्यापारियों के लिए, जिन्हें अपनी सब्जियों और माल को आजमगढ़ शहर ले जाने के लिए 35 किलोमीटर जाना पड़ता है। पुल बन जाने के बाद उन्हें 15 किलोमीटर की दूरी कम हो जाएगी।<br />ग्रामीणों के मुताबिक करीब 15 साल पहले गांव की मजलिस में हिस्सा लेने आए मुस्लिम धर्मगुरुओं के सुझ्झाव पर उन्होंने जकात से धन एकत्र कर पीने का पानी, सड़क और स्कूल जैसी बुनियादी सुविधाओं की पहल की थी।<br />46 वर्षीय ग्रामीण अब्दुल हन्नान कहते हैं कि हैदराबाद, लखनऊ व अन्य हिस्सों से आने वाले धर्मगुरुओं को खस्ताहाल टूटी सड़कों की वजह से हमारे गांव पहुंचने में बहुत दिक्कतों के सामना करना पड़ा। मजलिस के दौरान उन्होंने ग्रामीणों से जकात के जरिए अपने गांव को खुद विकसित करने की सलाह दी।<br />धर्मगुरुओं की सलाह मानकर ग्रामीणों ने चंदा एकत्र कर सबसे पहले एक टूटी सड़क की मरम्मत की। धीरे-धीरे जकात से ही गांव का कायाकल्प हो गया।<br />3000 की आबादी वाले मुस्लिम बाहुल्य सिराजपुर गांव के लगभग हर परिवार का कोई न कोई सदस्य मुंबई व देश के अन्य शहरों में नौकरी या कोई व्यवसाय करता है। गांव के कुछ परिवारों के लोग तो दुबई में भी नौकरियां करते हैं। इसिलए सभी लोग स्वेच्छा से गांव के विकास में चंदा देते हैं।<br />IANSAvlokanhttp://www.blogger.com/profile/18431353904399972129noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-7751653303074957854.post-18657541567792626452009-08-25T21:18:00.000-07:002009-08-25T21:35:54.177-07:00जल रही लंका के रावण<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiX6pHaAHkyh07XAgp5AOtIZxZs4Ko_68fR5-PfvdyPB-UP-ee88N37T78TKC_ilhWLkHHO3pNbdIzqCmw8AsTa4Ho0sCDR61hdYVnDj_w9yuWQTpcQW7OMV6aXJRFM-UHtvBm4Kkc2E6Hs/s1600-h/jaswant.bmp"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5374126377841198930" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 313px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiX6pHaAHkyh07XAgp5AOtIZxZs4Ko_68fR5-PfvdyPB-UP-ee88N37T78TKC_ilhWLkHHO3pNbdIzqCmw8AsTa4Ho0sCDR61hdYVnDj_w9yuWQTpcQW7OMV6aXJRFM-UHtvBm4Kkc2E6Hs/s320/jaswant.bmp" border="0" /></a> पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह अब भाजपा के नहीं रहे। इस दक्षिणपंथी पार्टी ने उन्हें एक झटके में पराया कर दिया। पार्टी की ऐसी बेरुखी का अंदेशा तो भारतीय सेना में अपनी सेवाएं दी चुके जसंवत को हरगिस नहीं रहा होगा। उन्होंने अपने जज्बातों को बयां करने का अदम्य साहस दिखाया और खिसयाई पार्टी ने उन्हें एक झटके में दूध से मक्खी की माफिक निकाल फेंका।<br /><div><span class=""></span></div><br /><div>जसवंत के जेहन में यह चल रहा होगा कि जिस पार्टी के लिए उन्होंने 30 साल दिए उसने उन्हें 30 सेकेंड में ही बेगाना कर दिया। यह बात उन्होंने शिमला में कह भी दी। कभी वाजपेयी के हनुमान करार दिए गए जसवंत अब रावण हैं। </div><br /><div>अब बेचारे जसवंत जी क्या करें। उनके राम यानी वाजपेयी जी का अब ‘रामराज’ नहीं रहा जहां वह हनुमान हुआ करते थे। वैसे ·भाजपा के हनुमान रहे जसवंत ऐसा कुछ किया भी नहीं किया जिसे कोई राजनीतिक दल सीधे तौर अनुशासनहीनता मान ले। न तो उन्होंने बंगारू लक्ष्मण की तरह रुपये के पैकेट लिए और नहीं उमा भारती की तरह सीधे अपने नेताओं को लताड़ लगाई। फिर आखिर एक किताब के बिना उन पर कार्यवाही क्यों कर दी गई? </div><br /><div><span class="">वैसे जसवंत जिस लन्का के रावण बन बैठे, अब उसी में आग लग गयी है। आग लगाने वाले कहीं दूर देश से आए हनुमान नहीं बल्कि अपने ही लोग हैं। अरुण शौरी हों या सुधीन्द्र कुलकर्णी सबकी पूँछ में आग लगी हुई है। अब सम्भव है की जसवंत को रावण बनाकर निकलने वाले लोग ही न इस आग के शिकार हो जायें । </span></div><br /><div>जो पार्टी सबसे पहले आंतरिक लोकतंत्र की बात करती है वह उस बात को नहीं पचा पाई जिससे उसका सीधे कोई सरोकार नहीं था। महज विचारधारा पर आंच के नाम पर एक कद्दावर नेता की तिलांजलि दे दी गई। </div><br /><div>खैर , जसवंत ने उसी सच को बढ़चढ़ कर कह दिया जिसे लोहिया और मौलाना आजाद जैसे नेता पहले ही कह चुके थे। उन्होंने कहीं यह नहीं कहा कि जिन्ना भारत के बंटवारे के लिए जिम्मेदार नहीं थे। हां उन्होंने इसकी सामूहिक जिम्मेदारी की बात जरूर कही है।इतिहास पर बहस न करने की सीख देने वालों को यह सोचना होगा कि विज्ञान में कोई बात परमस्थायी नहीं होती तो फिर अतीत के दस्तावेजों पर बहस क्यों नहीं हो सकती। </div><br /><div>सवाल है कि क्या इतिहास में त्रुटियां नहीं हो सकतीं? सबसे अहम बात यह है कि पुस्तक में लेखक का विचार निजी होता है तो उससे पार्टी इतनी आहत क्यों दिखती है?चलिए मान लेते हैं कि जसवंत ने भाजपा की विचारधारा को तार-तार कर दिया है। तो फिर आडवाणी के जिन्ना प्रेम में कौन सा अनुराग छुपा था जिन्हें जसवंत की माफिक कुर्बानी नहीं देनी पड़ी। इसी पार्टी को आडवाणी के खिलाफ कठोर कार्यवाही करने में पसीने छूट गए थे।</div><br /><div>ऐसे में भाजपा जैसी तथाकथित लोकतांत्रिक पार्टियों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का क्या मतलब है। पार्टी यही चाहती है कि उसके साथ जुड़ा हर व्यक्ति अपने विचारों और सोच को कहीं दफन कर दे। जो उसके ·भाए उसी बात को हर जगह व्यक्त किया जाए। जज्बातों के कद्र की कोई बात नहीं। अब ऐसी पार्टी का चिंतन बैठक करना लाजमी लगता है।</div>Avlokanhttp://www.blogger.com/profile/18431353904399972129noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7751653303074957854.post-20591207840959559562009-08-16T22:13:00.000-07:002009-08-16T22:19:19.332-07:00टीम में ‘दीवार’ की वापसी<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhP50PUBq9eYnnuyJxJ2YqmWmYQKsS94w5LkuOA-8jfq4Esj6a5N1f6rYS98qNfXXkcXu4GbiY91ozcw836Y_8Oaw-FAwnA4LlwJ-r84fpHEIeNU7PaHnlmBJ6NWzjrT6q4JpEQrLeD6A8d/s1600-h/dravid.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5370797669154828962" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 243px; CURSOR: hand; HEIGHT: 320px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhP50PUBq9eYnnuyJxJ2YqmWmYQKsS94w5LkuOA-8jfq4Esj6a5N1f6rYS98qNfXXkcXu4GbiY91ozcw836Y_8Oaw-FAwnA4LlwJ-r84fpHEIeNU7PaHnlmBJ6NWzjrT6q4JpEQrLeD6A8d/s320/dravid.jpg" border="0" /></a><br /><div>भारतीय क्रिकेट के महान खिलाड़ियों में शुमार हो चुके राहुल द्रविड़ की टीम में वापसी से साबित भी हो गया कि चयनकर्ताओं की नजर में वह आज भी एक ‘दीवार’ हैं।</div><div><br />चयनकर्ताओं ने मुंबई के युवा बल्लेबाज रोहित शर्मा को बाहर का रास्ता दिखाया और इसके बाद बेंगलुरू के द्रविड़ की टीम में वापसी हुई। उनकी यह वापसी दो वर्षों बाद हुई। उन्होंने 14 अक्टूबर, 2007 को अपना आखिरी मैच खेला था।</div><div><br />द्रविड़ का आखिरी 10 एकदिवसीय मैचों में प्रदर्शन बेहद साधारण ही रहा। उन्होंने अपने आखिरी 10 मैचों में महज 136 रन बनाए जिसमें सिर्फ एक अर्धशतक शामिल था। यही वजह रही कि उन्हें टीम में वापसी के लिए इतना लंबा इंतजार करना पड़ा।</div><div><br />द्रविड़ की वापसी के पीछे एक बड़ी वजह इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) में उनका शानदार प्रदर्शन रहा है। टीम में उनकी वापसी को मध्यक्रम में एक मजबूती के तौर पर देखा जा रहा है। ‘श्रीमान भरोसेमंद’ और ‘मिस्टर कूल’ जैसे कई नामों से पुकारे जाने वाले द्रविड़ के लिए बल्लेबाजी क्रम में तीसरा स्थान सटीक माना जाता है।<br />आज से 13 साल पहले <span class="">अंतरास्ट्रीय </span>क्रिकेट में कदम रखने वाले द्रविड़ मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर के बाद दूसरे ऐसे भारतीय क्रिकेट हैं जिनके नाम टेस्ट और एकदिवसीय दोनों में 10,000 से अधिक रन दर्ज हैं। </div><br /><div>द्रविड़ ने अब तक 333 एकदिवसीय मैचों में 39.49 की बेहतरीन औसत से 10,585 रन बनाए हैं जिसमें 12 शतक और 81 अर्धशतक शामिल हैं। उन्होंने 134 टेस्ट मैचों में 52.53 की औसत से 10,823 रन बनाए है। इसमें उन्होंने 26 शतक भी जड़े हैं। </div>Avlokanhttp://www.blogger.com/profile/18431353904399972129noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7751653303074957854.post-66255816569049992532009-08-12T10:03:00.000-07:002009-08-12T10:06:16.676-07:00इस्लाम और चार शादीपिछले दिनों विधि आयोग ने विधि मंत्रालय को एक रिपोर्ट सौंपी है जिसमें कहा गया है कि एक से अधिक विवाह करना इस्लाम के मूल्यों के विपरीत है। रिपोर्ट में यहां तक कहा गया है कि चार शादी करने को लेकर लोग एक तरह की गलतपफहमी के शिकार हैं। इस रिपोर्ट पर भारत के कुछ उलेमा और इस्लामी संघठन अपना विरोध जता रहे हैं।<br />सवाल यह है कि किसने ये आजादी दे दी कि कोई भी शख्स चार और औरतों पर अपनी हूकुमत चलाएगा। मैं इस वाक्य इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि चार शादी की वकालत करने वाले लोग सिर्फ औरत को सामान के सरीखे देखते हैं और उनका यही मानना होता है कि वे बादशाह हैं और जिसके साथ वे निकाह कर लेंगे वह उनकी गुुलाम हो जाएगी। इसलिए मैं इसे शादी नहीं बल्कि शादी के नाम पर किसी इंसान पर हूकुमत करने की एक प्रक्रिया मानतहंूं।<br />मैं इतना जरूर मानता हूं कि मुझे किसी उलेमा के माफिक इस्लाम की समझ और जानकारी नहीं है। हां मैं जिस इस्लाम को जानता और मानता हूं उसमें औरतों के लिए पूरा सम्मान और हक है। परंतु हमारे कुछ उलेमा औरतों को मर्दों की तुलना में कम आकंते हैं। ऐसा मेरा अनुभव भी रहा है।<br />अभी हाल ही एक हाफिज से मेरी मुलाकात हुई। उन्होंने बातों-बातों में कहा कि औरत को हर हाल में अपने मर्द यानी पति के हुक्मों की फरमाबरदारी करनी चाहिए और उसका फर्ज अपने पति की सेवा करना है। मेरा उनसे उलट सवाल था कि क्या मर्द को अपनी बीवी की बात माननी चाहिए या फिर उसे बीबी की खिजमत नहीं करनी चाहिए? क्या ऐसा करना मर्दों के मर्दानगी के खिलाफ है? मेरी इन बातों को सुनकर उन्होंने कहा कि आप औरतपरस्त हैं।<br />बहरहाल, इस्लाम का हवाला देकर जो लोग चार शादियों की वकालत करते हैं उन्हें जरा पैगम्बर की जिंदगी के हर पहूल पर गौर करना चाहिए। यह बात सबकों मालूम होगी कि जब पैगम्बर ने पहली शादी की तो वह महज 21 साल के थे। उन्होंने पहली शादी उस विधवा से की थी जिसकी उम्र तकरीबन 40 के आसपास थी। सवाल यह कि क्या हमारे ये कुछ उलेमा विधवा विवाह की वकालत करतें हैं या खुद ऐसी कोई पहल करने की हिम्मत करते हैं।<br />ऐसे कई सारे इस्लाम के पहूल हैं जिनके हवाले से इन तथाकथित मर्दों की तथाकथित मर्दानगी को बखूबी झकझोरा जा सकता है। उनको यह समझना होगा कि ये ही नहीं बल्कि औरतें भी इन पर हूकुमत कर सकती हैं। जहां तक चार शादी की बात है तो इस पहलू पर इन लोगों को अपने ज्ञान को थोड़ा बढ़ाने की जरूरत है।Avlokanhttp://www.blogger.com/profile/18431353904399972129noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7751653303074957854.post-21742422040315397692009-08-10T10:48:00.000-07:002009-08-10T11:30:07.678-07:00स्वाइन फ्लू और बचाव<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEih9MMwqxShgqLlb-iVJGl5n2jk55KRQiUnQQl6foN382ZjPGMaFgTzKQkpx62mKoiGk8BtByFR51xKQkmD3Tx3vddCN43UZ5AAOGjQqHx3lfZo5uw1g5onfBV95O530hTAgyv0sT_0ok4X/s1600-h/Swine%20Flu%202.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5368401426277228162" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 234px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEih9MMwqxShgqLlb-iVJGl5n2jk55KRQiUnQQl6foN382ZjPGMaFgTzKQkpx62mKoiGk8BtByFR51xKQkmD3Tx3vddCN43UZ5AAOGjQqHx3lfZo5uw1g5onfBV95O530hTAgyv0sT_0ok4X/s320/Swine%2520Flu%25202.jpg" border="0" /></a><br /><p>एच1एन1 वायरस जो स्वाइन फ्लू-ए के नाम से जाना जा रहा है आम तौर पर सूअरों पर इसका असर देखा गया है। इससे पीड़ित व्यक्ति को बुख़ार, आलस आना, कफ़ बनना, भूख न लगना, पीठ में दर्द, शरीर में दर्द और कमज़ोरी जैसी शिकायतें होती हैं। </p><br /><p>इसके अलावा नाक बहना, गले में ख़राश तथा उल्टी−दस्त की शिकायत भी होती है।एच1एन1 वायरस के शिकार व्यक्ति को सांस लेने में तकलीफ़, सीने या पेट में दर्द और बेहोशी जैसी स्थिति होती है और मरीज़ खुद को असमंजस की स्थिति में पाता है। इसी तरह, पांच साल से कम बच्चों में दूसरे वायरल फ़ीवर की तरह ही देखना चाहिए कि कहीं बच्चे को अचानक तेज़ बुख़ार तो नहीं हुआ या गले में दर्द, सांस लेने में तकलीफ़, शरीर में नीलापन, अत्यधिक बेहोशी जैसी स्थिति और चिड़चिड़ापन तो नहीं है। </p><br /><p>शरीर पर रैश दिखना भी स्वाइन फ्लू होने का लक्षण है।अब आपके लिए ये जानना भी ज़रूरी हो जाता है कि स्वाइन फ्लू से बचने के लिए किस तरह की एहतियात बरतने की ज़रूरत है। सबसे पहले तो इससे बचाव के लिए आपको एक खास तरह के मास्क की ज़रूरत होगी। ये एक आम मास्क से अलग है। इसका नाम है एन 95। ये मास्क हवा में फैले कीटाणुओं को फिल्टर कर सकता है।ये म़ॉस्क अस्पताल में जांच के लिए जाते समय या अस्पताल में वेटिंग रूम में पहनना बेहद ज़रूरी है।</p><br /><p>इसका अलावा अगर आपने किसी ऐसे व्यक्ति को छुआ है जिसे कफ़ और जुकाम हो तो अपने हाथ ज़रूर धोएं। खाने के पहले और खाने के बाद हाथ धोएं…जिन को सर्दी या ज़ुकाम भी हुआ तो वे कोशिश करें कि सावर्जनिक जगहों पर न जाएं।कोई स्वाइन फ्लू का मरीज़ है तो उसे अलग कमरे में रखें।कई अस्पतालों में मरीज़ों की मदद के लिए लिए हरसंभव कदम उठाए गए हैं.</p><br /><p>अगर स्वाइन फ्लू के लक्षण मिलें तो आप दिल्ली के 13 अस्पतालों में जा सकते हैं। कुछ अस्पतालों के नाम इस प्रकार हैं : <strong><em>एयरपोर्ट हेल्थ आफिस, राम मनोहर लोहिया अस्पताल, लोकनायक जयप्रकाश, बाड़ा हिंदू राव अस्पताल, जीटीबी अस्पताल, डीडीयू अस्पताल, पीतमपुरा का बीएम अस्पताल औरर पूर्वी दिल्ली का लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल।</em></strong></p><br /><p>उधर, मुंबई में परेल स्थित <strong>कस्तूरबा अस्पताल</strong>, घाटकोपर के <strong>राजावाड़ी अस्पताल</strong>, बोरीवली के <strong>भगवती अस्पताल</strong>, मुलुंड स्थित <strong>एमटी अग्रवाल अस्पताल</strong>, बांद्रा के <strong>भाभा अस्पताल</strong>, गोरेगांव के <strong>सिद्धार्थ अस्पताल</strong> में जांच करवाने मरीज़ जा सकते हैं।</p><br /><p>Source : NDTV India</p>Avlokanhttp://www.blogger.com/profile/18431353904399972129noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7751653303074957854.post-20554953326750832532009-08-10T10:21:00.001-07:002009-08-10T10:45:48.535-07:00इस्लाम और एक से अधिक शादी<strong>अब्दुल वाहिद आज़ाद,<br />बीबीसी हिंदी डॉट कॉम </strong><br />इस्लाम में एक से अधिक शादी करने के मामले में विधि आयोग की ताज़ा रिपोर्ट की उलेमा ने कठोर आलोचना की है और इसे इस्लामी शिक्षा और शरीयत के विरुद्ध क़रार दिया है.<br />ग़ौरतलब है कि विधि आयोग ने विधि मंत्रालय को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि दूसरी शादी करना ' इस्लाम के सच्चे क़ानून की आत्मा के ख़िलाफ़ है. साथ ही जो ये आम समझ है कि भारत में मुसलमानों का क़ानून उन्हें चार पत्नियाँ रखने की इजाज़त देता है, ग़लत है. '<br />रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि कई मुस्लिम देशों जैसे तुर्की और ट्यूनीशिया, जहाँ बहुपत्नीत्व पर प्रतिबंध है ,वहीं मिस्र, सीरिया, जॉर्डन, इराक़, यमन, मोरोक्को, पाकिस्तान और बांगलादेश में दूसरी शादी प्रशासन या अदालत के अधीन है.<br />विधि आयोग की रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए भारत में इस्लामी शिक्षा के सबसे बड़े केंद्र दारुल उलूम देवबंद के उपकुलपति मौलाना ख़ालिद मद्रासी का कहना है कि आयोग की रिपोर्ट मिथ्या पर आधारित है जो ग़लत और मज़हब में दख़ल के बराबर है.<br />उनका कहना है, " हम केवल भारतीय संविधान के अधीन हैं और संविधान अपने-अपने धर्म को मानने की आज़ादी देता है. एक से अधिक शादी करना मुसलमानों का धार्मिक अधिकार है और हम आयोग की रिपोर्ट की निंदा करते हैं. "<br />हालाँकि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की महिला सदस्या हसीना हाशीया विधि आयोग की राय को सही मानती हैं. उनका कहना है कि आयोग की बात इस्लामी शिक्षा के अनुरुप है.<br />वे कहती हैं, " इस्लाम में कुछ ऐसी विशेष स्थितियों में ही एक से अधिक शादी करने की इजाज़त दी गई है जैसे विधवा की संख्या काफ़ी बढ़ गई हो और इससे समाज में बुराई फैलने का डर हो. "<br />हाशीया कहती हैं कि भारत में दूसरी शादी करने के मामले प्रशासन के अधीन होने चाहिए. जैसे कई मुस्लिम देशों में हैं, लेकिन पूरी तरह से प्रतिबंध नहीं होना चाहिए, क्योंकि वो भी इस्लमी शिक्षा के विरुद्ध है.<br />मामले की गहराई पर बात करते हुए जामिया मिल्लिया इस्लामिया के इस्लामिक स्टडीज़ विभाग के प्रोफ़ेसर जुनैद हारिस कहते हैं कि इस्लाम में एक से अधिक शादी की इजाज़त ज़रूर दी गई है लेकिन न इसे आवश्यक बनाया गया है और न ही इसे बढ़ावा देने की बात कही गई है, बल्कि इसके लिए कुछ शर्तें भी रखी गई हैं.<br />उनका कहना है, " इस्लाम में एक से अधिक शादी की इजाज़त उसे दी गई है जो अपने बीवियों के बीच इंसाफ़ और उनके अधिकार को पूरा कर सकता है लेकिन इस्लाम इस बात की इजाज़त नहीं देता कि जो चाहे इस सुविधा का ग़लत इस्तेमाल करे. "<br />जुनैद हारिस स्वीकार करते हैं कि भारत में एक से अधिक शादी करने वाले अधिकतर लोग इस्लाम के सच्चे क़ानून की आत्मा का पालन नहीं करते हैं और कुछ तो अपने पहली पत्नी और उससे पैदा होने वाले बच्चों को भी छोड़ देते हैं जो इस्लाम के विरुद्ध है.<br />लेकिन कुछ उलेमा न सिर्फ़ विधि आयोग की रिपोर्ट से नाराज़ है बल्कि इसे शरीयत की ग़लत व्याख्या भी क़रार दे रहे हैं.<br />धार्मिक संगठन जमीअत उलेमा हिंद के सचिव मौलाना हमीद नोमानी ने विधि आयोग की रिपोर्ट पर सख़्त आपत्ति जताते हुए कहा कि ' आयोग को इस बात का अधिकार नहीं हैं कि वो शरीयत की ग़लत व्याख्या करे. '<br />मैंने यही सवाल समाजशास्त्री इम्तियाज़ अहमद से पूछा कि क्या ये ‘ शरीयत की ग़लत व्याख्या है ’ तो उनका कहना था, “ शरीयत की व्याख्याएं बदलती रहती हैं और एक से अधिक शादी करने की खुली छूट न क़ुरान में है न हदीस में है. ”<br />तो ऐसी क्या वजह है कि उलेमा बिरादरी आयोग की रिपोर्ट को मज़हब में दख़ल मान रहे हैं , तो इम्तियाज़ कहते हैं, " उलेमा को ऐसे किसी मामले में फेरबदल शरीयत में छेड़छाड़ लगता है क्योंकि वो इसे पहचान का मामला समझ लेते हैं, जबकि पहचान चार शादी करने से नहीं बल्कि अच्छे काम करने से होती है. "<br />मुसलमानों के एक से अधिक शादी का मामला विवादित रहा है लेकिन भारत सरकार के एक अध्ययन के अनुसार सच्चाई यह है कि इन सबके बावजूद भारतीय मुसलमान देश की दूसरी धार्मिक बिरादरियों से पीछे हैं।<br />source: बीबीसी HindiAvlokanhttp://www.blogger.com/profile/18431353904399972129noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-7751653303074957854.post-34737928757482430852009-08-04T09:26:00.000-07:002009-08-04T09:29:12.160-07:00निरूपमा जी आप मेनन मत बनिएगा !<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhoESZH2UD_-mJwBFK6Y3v9U8JHTUurM1Cs_JD_Cqv0la53SFO2FSxz9OLZIVQx180MZsPg17Z4WbaHAEfXAK5zc7vcJNFMLnUCSIbK6ng5arocIMGoD4j9DuR492ecyhKZcTPOKQLATAx3/s1600-h/Ms+Nirupama+Rao.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5366146282876098818" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 297px; CURSOR: hand; HEIGHT: 320px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhoESZH2UD_-mJwBFK6Y3v9U8JHTUurM1Cs_JD_Cqv0la53SFO2FSxz9OLZIVQx180MZsPg17Z4WbaHAEfXAK5zc7vcJNFMLnUCSIbK6ng5arocIMGoD4j9DuR492ecyhKZcTPOKQLATAx3/s320/Ms+Nirupama+Rao.jpg" border="0" /></a><br /><div></div>शिवशंकर मेनन अब अतीत की बात हो चुके हैं। उनकी जगह अब निरूपमा राव ले चुकी हैं। अब निरूपमा के सामने कई चुनौतियां हैं जो उनका कड़ा और माकूल इम्तहान लेंगी। शायद वह वैसी एक कोई गलती नहीं होनें देंगी जो मेनन साहब के कार्यकाल के आखिरी दिनों में हो गई।<br />मैं मेनन साहब की काबिलियत और उनकी निष्ठा पर कोई सवाल खड़े नहीं कर रहा। वह एक काबिल अधिकारी रहे हैं जिनके लिए हमारे दिल में आदर है। उन्होंने कई ऐसी कामयाबियां भी भारत के झोली में डालीं जिनकी हमारी विदेश नीति को भारी दरकार थी। मसलन कि ऐतिहासिक परमाणु करार के साथ उनका नाम इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज हो गया।<br />परंतु मुझे डर इस बात का है कि कहीं इतिहास उनको एक खलनायक न मान बैठे। शर्म-ंअल-शेख में हम जो गलती कर बैठे उसकी उम्मीद मुझे इसलिए नहीं थी कि मेनन साहब जैसे अधिकारी की मौजूदगी में हमारी विदेश नीति तो जरा भी लचर नहीं हो सकती। परंतु अफसोस कि ऐसा नहीं हुआ। बलूचिस्तान के रूप में ऐसा बिंदु साझा बयान में शामिल किया गया है जो पाकिस्तान का हमारे खिलाफ एक हथकंडा है। डर इस बात का है कि कहीं बलूचिस्तान नाम का एक कलंक हमारे पाक दामन में न लग जाए। खुदा न करे, पर अगर ऐसा हुआ तो अफसोस है कि मनमोहन के साथ मेनन साहब भी खलनायक के रूप में याद किए जाएंगे।<br />अब नई विदेश सचिव निरूपमा से उम्मीद यही करतें हैं कि वह मेनन साहब की गलती कभी नहीं दोहराएंगी। ऐसा उम्मीद रखना वाजिब भी हैं क्योंकि दक्षिण एशिया में निरूपमा को काम करने का लंबा अनुभव है। उनसे एक उम्मीद यह भी होगी कि उनके रहते ही शर्म-ंअल-शेख की गलती भूल को हमेशा के लिए खत्म कर दिया जाएगा।Avlokanhttp://www.blogger.com/profile/18431353904399972129noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7751653303074957854.post-84629114061347129132009-07-30T10:01:00.000-07:002009-07-30T10:24:12.286-07:00नापाक कोशिश<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhja_Uu8x_gx4dYPL4t6XlY5YT9aAtUbM1sAxqd2RjmVaYfEg_0BrqADu4IdElQKKIUbNxkfIesSCwOLVZH184zwcJFTUrpJul9wD_zjF5MsAbUs_dy4YpzwHHs9KlM89T2f_rrZAng0LwZ/s1600-h/Yousaf%20Raza%20Gilani%20-%201_0.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5364300925712839378" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 230px; CURSOR: hand; HEIGHT: 230px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhja_Uu8x_gx4dYPL4t6XlY5YT9aAtUbM1sAxqd2RjmVaYfEg_0BrqADu4IdElQKKIUbNxkfIesSCwOLVZH184zwcJFTUrpJul9wD_zjF5MsAbUs_dy4YpzwHHs9KlM89T2f_rrZAng0LwZ/s320/Yousaf%2520Raza%2520Gilani%2520-%25201_0.jpg" border="0" /></a><br /><div>पडोसी मुल्क पाकिस्तान आज पर हम पर धौस ज़माने की कोशिश में है। उसको लगता है की वह दुनिया के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश को कूटनीतिक तौर पर घेर लेगा. यही वजह है की आजकल वह आपने दमन में लगी कालख को साफ़ करने की बजाय भारत की ओर एक रणनीति के तहत ऊँगली उठा रहा है. </div><br /><div>पाकिस्तान का नया शिगूफा यह है की उसके मुल्क में भारत आतंकवाद को मदद दे रहा है। उसके पास इतना हिम्मत नहीं की इस झूठ को वह तेज आवाज में कह सके लेकिन वह हर स्तर पर इस प्रयास में है की भारत पर कीचड़ उछाल दिया जाये. पाक मीडिया की मानें तो पाकिस्तान ने भारत को रा के बारे में सबूत भी दे दिए हैं. यह बात अलग है को वे आधारहीन कथित सबूत हमारी सरकार को नहीं मिले हैं. ज्ञात हो कि रा हमारे देश की प्रमुख खुफिया एजेन्सी है. </div><br /><div>सवाल यह है की 'खिसियानी बिल्ली' के माफिक रहने वाले पाकिस्तान में इतना दुस्साहस कहाँ से आया कि हमारे मुल्क और हमरी खुफिया एजेन्सी पर उंगली उठा रहा है? याद रहे कि अभी हाल ही में हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ पाकिस्तानी प्रधानमंत्री यूसुफ़ रजा गिलानी ने मिस्र के शहर शर्म-अल-शेख में मुलाकात की थी। दोनों की मुलाकात के बाद जो साझा बयान जारी किया गया उसमे बलूचिस्तान नाम का नया अध्याय जुड़ गया. यह पहली बार हुआ कि पाकिस्तानी के एक ऐसे सूबे का हमने जिक्र कर दिया जिसका हमसे कोई सरोकार नहीं है. जो लोग बलूचिस्तान में अपने हाथों में हथियार उठाये संघर्ष कर रहें हैं, भला हमने उनकी मदद कब की? इस बात को कहने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए की शर्म-अल-शेख में कोई न कोई ऐसी गलती जरूर हो गई जिससे अपंग पडा पाकिस्तान दौड़ने की कोशिश कर रहा है. मुंबई हमले के बाद वह मुहं छुपाते फिर रहा था और आज सीना तानने के प्रयास में हैं. </div><br /><div>खैर, अपनी त्रुटी को मानते हुए पाकिस्तान के इस नए पाशे को समझाने की जरूरत है। ज्ञात रहे की पिछले वर्ष मुंबई में १० पाकिस्तानी आतंकवादियों ने जो भीषण रक्तपात किया, उसके बाद से पाकिस्तान बैकफुट पर चला गया था. चौतरफा घिरे पकिस्तान ने यह पाशा मुंबई हमले के स्पष्ट दाग को धोने और भारत पर अनायास कीचड उछालने के मकसद से फेंका है. </div><br /><div>अब सवाल यह है कि पाकिस्तान के पास कौन से ऐसे सबूत हैं जुनके बिना पर वह भारत की और उंगली उठा रहा है। दरअसल कुछ महीनों पहले बलूचिस्तान इलाके से कुछ कथित आतंकवादियों के पास से कथित तौर पर भारत में बने हथियार बरामद हुए थे. पाकिस्तान का यह दबी जुबान में कहना रहा है की बलूचिस्तान में भारत चिंगारी भड़का रहा है. अब वह सभवत: उन्ही बरामद हथियारों को अपना सबूत कह रहा है ताकि भारत को परेशान किया जा सके. </div><br /><div>पकिस्तान की ओर से यहाँ तक कहा जा रहा है कि लाहौर में श्रीलंका क्रिकेट टीम पर हमले के पीछे भी भारत का हाथ था। हालाँकि इसका कोई सबूत उसके पास नहीं है. पाकिस्तानी मीडिया के हवाले से यह भी कहा गया है कि भारत कि खफिया एजेन्सी रा अफगानिस्तान में ट्रेनिंग कैंप चला रही है. जबकि पुरी दुनिया जानती है कि भारत अपने हर स्तर से अफगानिस्तान कि बेहतरी के लिए काम कर रहा है. उल्टे पकिस्तान की खूंखार खुफिया एजेन्सी आईएसआई ने काबुल में भारत के दूतावास पर हुए आतंकवादी हमले की साजिश रची थी. इसके पुख्ता सबूत मिले थे. अब वाही पाकिस्तान हम पर आरोप मढ़ रहा है. </div><br /><div>पाकिस्तान कि इस नयी चाल के पीछे दूरगामी नतीजे को ध्यान में रखकर बने गयी रणनीति छुपी है. इसे समझने कि जरूरत है. पाकिस्तान को यह बताना बहुत जरूरी है कि वह अपनी नापाक हरकतों पर पर्दा डालने के लिए भारत जैसे जिम्मेदार देश पर उंगली उठाने कि हिमाकत नहीं कर सकता.</div>Avlokanhttp://www.blogger.com/profile/18431353904399972129noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7751653303074957854.post-75601782115773460352009-07-22T22:41:00.000-07:002009-07-22T22:47:34.846-07:00सूर्यग्रहण था या ‘मीडियाग्रहण’<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEilm290O2veeIXPeuFZAtGGr8cGZ6kaJyPwSFpFR46RC8OZtXtAoJ2DeAzccs6j5sNGGh5OUJjYwOUexrqJ3_1mLZWkKMJZa5xXak2NL36LNL3DEoDVG51Ex5Lj-qVu3a6fBHmKSzKamQBV/s1600-h/surya.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5361528105439946226" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 179px; CURSOR: hand; HEIGHT: 200px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEilm290O2veeIXPeuFZAtGGr8cGZ6kaJyPwSFpFR46RC8OZtXtAoJ2DeAzccs6j5sNGGh5OUJjYwOUexrqJ3_1mLZWkKMJZa5xXak2NL36LNL3DEoDVG51Ex5Lj-qVu3a6fBHmKSzKamQBV/s320/surya.jpg" border="0" /></a><br /><div>यह बात सच है कि सूर्यग्रहण एक अनोखा नजारा था और मीडिया को लोगों को इससे रुबरू करना चाहिए। मीडिया को इस प्राकृतिक घटना को लेकर लोगों के बीच पनपी ·भ्रांतियों को दूर करने की कोशिश करनी चाहिए थी। परंतु अफसोस ऐसा कम ही हुआ।<br />एक या दो चैनलों को छोड़ दें तो तकरीबन ज्यादातार हिंदी समाचार चैनल टोटकों और आडंबरों की गाथा सुनाने में लगे थे। इसके जरिए कुछ बाबा लोगों की कुछ घंटों के लिए चांदी हो गई। टीआरपी की दौड़ में शीर्ष में शामिल एक चैनल तो ग्रहण को कुछ इस प्रकार पेश कर रहा था कि मानों अब दुनिया गर्क होने वाली यानी कि प्रलय आने वाली है।<br />एक और चैनल की बात करूं तो वहां सूर्यग्रहण से होने वाले कथित और संभावित त्रासदियों का बड़े ही सुंदर ढंग से बखान किया जा रहा था। महिला समाचार प्रस्तोता एक बाबा से यही सवाल पूछे जा रहीं थी कि अब क्या होगा? ऐसा लग रहा था वह बाबा जी विधि के विधाता हों और प्रलय के बारे में पूरी तरह आश्वस्त हों। सच तो यह है कि उन बाबा को यह नहीं पता रहा होगा कि स्टूडियो के बाहर की दुनिया में क्या हो रहा है। </div><br /><div>एक मिसाल देना बुहत जरूरी है। दिल्ली में 12 जुलाई को मेट्रो हादसे के बाद हमारी मीडिया दिल्ली मेट्रो रेल निगम लिमिटेड के पीछे हाथ धोकर पड़ गई की, और ऐसा उसे ऐसा करना ·ाी चाहिए था। परंतु सदी के सबसे लंबे सूर्यग्रहण के दिन यानी बुधवार सुबह दिल्ली के पंजाबी बाग में मेट्रो के निर्माणाधीन स्थल पर फिर एक हादसा हुआ जिसमें एक 22 साल के नौजवान कामगार की मौत हो गई। हालांकि मीडिया ने खबर को दिखाया लेकिन इस बार पर श्रीधरन की अगुवाई वाली संस्था को नहीं घेर सका क्योंकि इस दिन मीडिया पर सूर्यग्रहण का ग्रहण लगा हुआ था<br />कहने का मतलब यह है कि अगर मीडिया ही मिथ्या और आडंबर को बढ़ावा देने में लग जाएगा तो फिर क्या रह जाएगा। यह बाजार का तकाजा है या फिर एक ·भेणचल में शामिल होने की होड़?</div>Avlokanhttp://www.blogger.com/profile/18431353904399972129noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7751653303074957854.post-48625386450937538372009-07-22T09:15:00.000-07:002009-07-22T09:24:06.392-07:00खबरों में मिलावट और बाजार<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjtj6I50dp9Ys34Eg08jIN10fuNzs7whWSWGGakA8al_wGbu7Ij7D-SPzdLQkHyY_hHOO9QpA-Bc7Rnw8wEGxflT_af-1ZqwSyEpCmhR86Xq0AhTCxbwoWUTXbWCIr5_G9x70mMtgGSk9j5/s1600-h/breaking-news.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5361320299512254658" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 227px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjtj6I50dp9Ys34Eg08jIN10fuNzs7whWSWGGakA8al_wGbu7Ij7D-SPzdLQkHyY_hHOO9QpA-Bc7Rnw8wEGxflT_af-1ZqwSyEpCmhR86Xq0AhTCxbwoWUTXbWCIr5_G9x70mMtgGSk9j5/s320/breaking-news.jpg" border="0" /></a> <strong>अनवारुल हक</strong><br /><div><span class="">यह बात बेहद हैरान करती है कि खबरें बाजार के मानकों पर खरी उतरनी चाहिए। सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर बाजार के मानकों का आधार क्या है और इसे हम किस परिधि में देखते हैं। क्या बाजार के मानक यही कहते हैं कि ‘बंदर का शराब पीना’ या फिर ‘सांपों का नृत्य’ दिखाने से हमारे समाचार चैनलों के पास विज्ञापनों का अंबार लग सकता है?</span></div><div><span class=""><br />यह बात सौ फीसदी सच है कि किसी चैनल या अखबार के संचालन के लिए बाजार की जरूरत पड़ती है। परंतु बाजार आपकी संपादकीय नीति को तय करे, ऐसा हरगिज़ नहीं होना चाहिए। यह सब जानते हैं कि बाज़ार की एक बड़ी कसौटी टीआरपी या फिर रीडरशिप है। परंतु क्या यह ज़रूरी है कि टीआरी में उछाल के लिए बंदर का रोना या फिर सापों का नाचना दिखाना जरूरी है। टीआरपी कोई सेंसेक्स नहीं है कि वित्त मंत्री साहब के एक बयान से इसमें उछाल आ जाए।</span></div><div><span class=""><br />हां, ऐसा हो सकता है कि कुछ छड़िक टीआरपी किसी चैनल को हासिल हो सकती हैं। परंतु हमारे देश की उस जनता को इस स्तर का आंकना ठीक होगा, जिसने हाल के आम चुनाव में कई मायनों में परिवक्वता का परिचय दिया। संजीदगी और सच्चाई अगर है, तो कोई भी खबर या मीडिया संस्थान लोगों के बीच जगह बनाएगा। इसमें किसी को तनिक भी आशंका नहीं होनी चाहिए।</span></div><div><span class=""><br />कुछ महीने पहले की बात है, जब मैंने बीबीसी पर एक अग्रणी समाचार चैनल के संपादक का संक्षिप्त साक्षात्कार सुना। वह जिस तरह से ‘सांप और बंदर समाचार’ की वकालत कर रहे थे, उसे सुन कर मेरे जैसा एक युवा पत्रकार हतप्रभ रह गया। सवाल यही है कि सूचनाओं के प्रसार के नाम पर और बाजार का रोना रोकर हम निर्लज्जता दिखाने को इस कदर उतावले हो गये हैं कि हमें समाज, देश और या खुद अपने भले की परवाह क्यों नहीं रही?</span></div><br /><div><span class="">बात जहां तक खबरों में मिलावट की है तो यह भी सोचने के लिए अहम मुद्दा है। यह कहना चाहता हूं कि ख़बर दूध नहीं हैं कि इसमें मिलावट करने पर इसका रंग नहीं बदलेगा। खबर को खबर ही रहने दिया जाए। हां, बाजार की ज़रूरत है, इसे स्वीकारने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए। परंतु यह धारणा बिल्कुल ग़लत होगी कि बाज़ार की वजह से ख़बरों में मिलावट की ज़रूरत भी है।</span></div><br /><div></div><br /><div>सौजन्य : <a href="http://mohallalive.com/">http://mohallalive.com/</a></div>Avlokanhttp://www.blogger.com/profile/18431353904399972129noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7751653303074957854.post-31712899927306886982009-07-17T22:00:00.000-07:002009-07-17T22:09:09.224-07:00शर्म-अल-शेख में मनमोहन ने शर्मिंदा किया!<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg6YDkmYT6cAnLSkjHXDkHxIpN5OOiG1lZWBbJNq2AMeiWS3ET-oDEXUC0WVMSXym6P1TIFvS3U3F6LnLgGFardEqT9Yb3wK9WqvMwXxDQ0TEbN6363LqwqNnuNVz7eF13DX-L5Nzf3XYpO/s1600-h/manmohan.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5359661958126863538" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 200px; CURSOR: hand; HEIGHT: 200px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg6YDkmYT6cAnLSkjHXDkHxIpN5OOiG1lZWBbJNq2AMeiWS3ET-oDEXUC0WVMSXym6P1TIFvS3U3F6LnLgGFardEqT9Yb3wK9WqvMwXxDQ0TEbN6363LqwqNnuNVz7eF13DX-L5Nzf3XYpO/s320/manmohan.jpg" border="0" /></a><br /><div>मिस्र के शहर शर्म-अल-शेख में हमारे प्रधानमंत्री जी ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी से जिस गर्मजोशी से हाथ मिलाया, उससे कई सवाल खड़े हो गए हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या मनमोहन सिंह जी और उनकी सरकार २६/११ की जघन्य घटना को भूल गए?</div><div><br />याद रहे कि चुनाव से पहले हमारी सरकार बार-बार यही कहती रही कि जब तक हमारा पड़ोसी देश आतंकवाद के खिलाफ ठोस कार्रवाई नहीं कर देता तब तक हम उसके साथ कोई बातचीत नहीं करेंगे। परंतु पाकिस्तान में आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई के नाम पर उस हाफिज सईद को रिहा कर दिया गया जिसने मुंबई पर हमले की नापाक साजिश रची थी। ऐसे में हम उस पाकिस्तान को फिर से अपने गले में लपेटने की कोशिश कर रहे हैं जिसकी फितरत ही डसना है। </div><div><br />सवाल यह है कि रूस में मनमोहन ने जिस दिलेरी का परिचय दिया था वह क्या महज एक दिखावा था या हमारे प्रधानमंत्री जी सियासी साहसी होने का अ·यास कर रहे थे। शर्म-अल-शेख में में मनमोहन सिंह ने संयुक्त बयान में उस चीज पर हामी भर दी जिसको लेकर हमने पाकिस्तान को बैकफुट पर धकेल दिया था।</div><div><span class=""></span><br />मुंबई हमले के बाद बुरी तरह घिरा पाकिस्तान अब इतरा रहा है। वह शर्म-अल-शेख में हमारे प्रधानमंत्री और हमारी सरकार को पटकनी देने का जश्न मना रहा है। उसको ऐसा करना भी चाहिए क्योंकि बिना कुछ किए ही हमारी सरकार ने उसको माफ जो कर दिया। परंतु मुंबई हमले के गवाह बने करोड़ो भारतीय उन पाकिस्तानों दरिंदों को कभी माफ नहीं करेंगे जिन्होंने इस नापाक हरकत को अंजाम दिया था। शायद हमारे प्रधानमंत्री जी को फिर से मंथन करना चाहिए।</div>Avlokanhttp://www.blogger.com/profile/18431353904399972129noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7751653303074957854.post-60430270533526544812009-06-23T22:59:00.000-07:002009-06-23T23:04:33.598-07:00सरकोजी साहब क्या बोल देते हैं ........<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiGpACWntfs_QMC6Qu0lrj5IZX_khmdNaPkCej3K8J7MXTrJOADx2Up0uEZQfh5lXLbj7gIb5fKbB1rXTzs3Zz1B4CuEzN0P-lIP6IL-RSTIu_nRsu3ZUDoHs6s9j8Ic8lz-hk-ymj5-etG/s1600-h/sarkozi.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5350770912697550338" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 246px; CURSOR: hand; HEIGHT: 320px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiGpACWntfs_QMC6Qu0lrj5IZX_khmdNaPkCej3K8J7MXTrJOADx2Up0uEZQfh5lXLbj7gIb5fKbB1rXTzs3Zz1B4CuEzN0P-lIP6IL-RSTIu_nRsu3ZUDoHs6s9j8Ic8lz-hk-ymj5-etG/s320/sarkozi.jpg" border="0" /></a><br /><div>श्रीमान सरकोजी जी आप फ्रांस के राष्ट्रपति हैं इसलिए आपको यह कहने का हक जरूर है कि आप अपने मुल्क में किसका स्वागत करेंगे और किसका नहीं. लेकिन किसी की मजहबी सीमाओं में बे रोक-टोक दखल देने का अधिकार तो आपको कतई नहीं है.</div><br /><div>आप को बुर्के पर अपनी नेक राय देने से पहले थोडा सोचना जरूर चाहिए था, जैसा की आपसे उम्मीद भी की जाती है. पर आप तो बोले तो बोलते ही रह गए. मैं आपकी इस नेक नियति पर सवाल खडा नहीं कर रहा कि आपकी बात में मुस्लिम औरतों की तकलीफों के प्रति छुपा एक भाव था जिसे आपने जाहिर किया. आपकी यह नीयत कितनी नेक थी कुछ लोग इस भी सवाल खड़े कर रहे हैं.<br />चलिए मन लेते हैं कि औरतों का बुरका पहनना उनके पिछडेपन और उनके एक तरह के घुटन में रहने की निशानी है. पर क्या आप यह कहना चाहते हैं कि सारी औरतें आपकी मिसेज यानी कार्ला ब्रूनी की पोशाक पहनने लगे तो वे आधुनिक हो जायेंगी. सरकोजी साहब आपका तर्क बहुत अटपटा लगता है.<br />मैं तो यही जनता हूँ कि पोशाक से किसी इन्सान के विकसित होने का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. जनाब मेरे मुल्क के प्रधानमंत्री पगडी पहनते हैं. आपको यह भी बता दूं कि मेरे देश के गृह मंत्री पी. चिदंबरम लूंगी पहनते हैं. शायद आप भी इन दोनों को जानते होंगे. कहीं आप इन दोनों बेहद पढ़े-लिखे लोगों को जाहिल मत बोल दीजियेगा.<br />हम तो आपको यही सलाह देंगे कि आप जरा अपने सेकुलरिज्म और इंसानी आजादी के पहलुओं पर चिंतन करिए. </div>Avlokanhttp://www.blogger.com/profile/18431353904399972129noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-7751653303074957854.post-38359127537225571462009-06-15T10:52:00.000-07:002009-06-15T11:13:44.841-07:00धोनी को इस कदर ना कोसो....<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjm51DmhJJQvUZJ4s4yufCLq87vtzCXaE8Qy3QjlbOLp9yogJ6z3eUK-bLjXAkP1TlmKRExXdcjzHpLvUD8yI46XWbVZzmleDL45x_yxF7byfBRJ0FS-8Fz6HOWgMgD3hTaq9mWnSPQBZbb/s1600-h/dh.bmp"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5347618805487650562" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 234px; CURSOR: hand; HEIGHT: 320px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjm51DmhJJQvUZJ4s4yufCLq87vtzCXaE8Qy3QjlbOLp9yogJ6z3eUK-bLjXAkP1TlmKRExXdcjzHpLvUD8yI46XWbVZzmleDL45x_yxF7byfBRJ0FS-8Fz6HOWgMgD3hTaq9mWnSPQBZbb/s320/dh.bmp" border="0" /></a><br /><div>यह बात सौ फीसदी सही है कि इस बार के टी-20 विश्व कप मंे टीम इंडिया के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की सारी <strong>जिद</strong> बेकार चली गई। उनकी हर रणनीति विफल रही। हर वार चूक गया। उन पर से भरोसा भी कुछ हद तक उठ गया। लेकिन हमें खेल के बुनियादी वसूलों और धोनी की उपलब्धियों को एक सुर में खारिज नहीं करना चाहिए।<br />अपने देश में हिंदी सिनेमा और क्रिकेट का मैदान ऐसी दो जगहें जहां कामयाबियों और नाकामियों का बड़े पैमाने पर मोल-तोल होता है। यहां अगर कोई चमक गया तो मानो वह देवता है। पर अगर इसी देवता ने कोई गुस्ताखी कर दी तो चंद मिनट में ही वह हमारी मीडिया और इसके जरिए लोगों की नजरों में <strong>रावण व कंस</strong> की जमात में खड़ा हो जाता है। ऐसा लगता है कि हर कोई उसका वध करने पर आमादा हो। शायद यही वजह है कि लोग अपने इस दिल से उपजे आक्रोश को पुतलों को जलाकर और पोस्टरों में अपनी भड़ास निकालकर शांत करते हैं।<br />ऐसा ही कुछ यूथ <strong>आइकाॅन</strong> कहे जाने वाले धोनी के साथ भी हो रहा है। धुरंधर धोनी हर जगह निंदा के पात्र बने हुए हैं। वह खुद अपनी पुरानी कामयाबियों को गिन रहे होंगे और इस एक नाकामी से उनकी तुलना कर रहे होंगे। ऐसा करके वह जिस निष्कर्ष पर पहुंचेंगे, वह वाकई उनके लिए तकलीफदेह होगा। और यह किसी भी इंसान के लिए हो सकता है।<br />यह वक्त आलोचना करने का जरूर है लेकिन बार-बार कोसने का नहीं है क्योंकि अभी बहुत क्रिकेट होनी है व धोनी को कई चुनौतियां झोलनी हैं। महज एक नाकामी के आधार पर हम धोनी की प्रतिभा और क्षमता को नकार नहीं सकते। हमें नहीं भूलना चाहिए इसी धोनी ने कामयाबियों की कई इबारतें गढ़ी हैं और संभव है कि अभी कई मंजिलें उनका इंतजार कर रही हों।</div>Avlokanhttp://www.blogger.com/profile/18431353904399972129noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7751653303074957854.post-57264326881847524572009-05-29T23:36:00.000-07:002009-05-29T23:38:40.521-07:00उम्मीदें ही उम्मीदें<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEifHyskOaQCcPUCyYnwD8olvfW4MxbOuuhyPKQuAZrK-DK42EloadEgDZ4Bx8CGE3wEZFZGedAuXh_8Ccmkkfs6XQinVylRCwRpeT7iVjZyCm9WGjegK-01vKO2AfdkieR2KlBv64RSVxQb/s1600-h/cricket.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5341502676682428482" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 225px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEifHyskOaQCcPUCyYnwD8olvfW4MxbOuuhyPKQuAZrK-DK42EloadEgDZ4Bx8CGE3wEZFZGedAuXh_8Ccmkkfs6XQinVylRCwRpeT7iVjZyCm9WGjegK-01vKO2AfdkieR2KlBv64RSVxQb/s320/cricket.jpg" border="0" /></a><br /><div>महेंद्र सिंह धोनी की अगुवाई में टीम इंडिया दूसरी बार टी-२० विश्व कप का खिताब जीतने इंग्लॅण्ड गयी है. इस बार इस टीम से से ऐसे उम्मीदें भी हैं. हालाँकि २००७ में धोनी और उनकी टीम से इतना उम्मीदें नहीं थी और नतीजा विश्व विजेता बनना रहा. परन्तु इस बार उम्मीदों का पहाड़ सा बन गया है जिसे पार करके फतह पाना धोनी और उनके धुरंधरों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है.<br />यह अक्सर देखा गया है की हमारी टीम उम्मीदों के बोझ टेल घुटने टेक देती है. लेकिन धोनी की इस टीम के बारे में यह राय रखना पूरी तरह उचित नहीं रहेगा. इस टीम में हर वह खूबी मौजूद हैं जो एक विश्व विजेता में होनी चाहिए. परन्तु अनिश्चित्तावों के इस खेल में पहले से कुछ भी कह पाना आसान नहीं है. अब इस टीम से उम्मीदें तो बहुत हैं लेकिन इन पर खरा उतरना इन खिलाडियों का काम है. हम तो सिर्फ उम्मीद ही कर सकते हैं.</div>Avlokanhttp://www.blogger.com/profile/18431353904399972129noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7751653303074957854.post-34270816115231725312009-04-29T10:18:00.001-07:002009-04-29T10:24:32.978-07:00बेरोजगारी और सुरक्षा होंगे मुसलमानों के मुद्देः शेरवानी<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgEu3RlJetAcV7o75PktXfyBjOa4fpHWcEJDMJtzhOuswi85eK45g0VpOWlrtBwVJfoKX3j7zcve5eGaRDvooAWcnp8XtdS4M37WWzuzdXC7gGD_bWNtUSSQd3XXKvkaR2K37o_k_7JGLyi/s1600-h/salim.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5330165399507602978" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 152px; CURSOR: hand; HEIGHT: 183px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgEu3RlJetAcV7o75PktXfyBjOa4fpHWcEJDMJtzhOuswi85eK45g0VpOWlrtBwVJfoKX3j7zcve5eGaRDvooAWcnp8XtdS4M37WWzuzdXC7gGD_bWNtUSSQd3XXKvkaR2K37o_k_7JGLyi/s320/salim.jpg" border="0" /></a><br /><div>पूर्व केंद्रीय मंत्री और बदायूं लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी <strong>सलीम इकबाल शेरवानी</strong> से <em><strong>कुबूल अहमद </strong></em>की हुई बातचीत के अंश-<br /><strong>इस बार के आम चुनाव में मुस्लिम मतदाताओं का रुझान किस ओर है।</strong> </div><br /><div>मेरे हिसाब से देश में एकमात्र धर्मनिरपेक्ष राष्टीय पार्टी कांग्रेस है। इसके लिए मुस्लिम मतदाता मतदान करेंगे। कांग्रेस के ही पक्ष में मतदान करने के लिए मैं मुसलमानों को एकजुट करुंगा।<br /><strong>किन मुददों पर मुस्लिम मतदाताओं मतदान करेगा।</strong><br />मुसलमानों के सामने सबसे बड़े मसले बेरोजगारी ओर सुरक्षा है। इस बार मुस्लिम मतदाता इन्हीं दो मुददों पर केंद्रित रहेंगे और अपना मत भी डालेंगे। मैं कांग्रेस में होने के नाते मैं अपनी पार्टी में इन दोनों मुददों को रखूंगा और इसके लिए काम करुंगा।<br /><strong>इस बार के चुनाव में कई मुस्लिम जमातें मैदान में हैं। इस पर आपकी राय क्या है।</strong><br />इन जमातों के सामने आने की कुछ वजहें हैं। जब इन लोगों की बातें नहीं सुनी गई तो ये लोग ख्ुाद लामबंद हुए और अपनी जमता के सामने आए। कहने का मतलब कि ये पार्टियां बेवजह नहीं है। मिसाल के तौर पर बटला हाउस मुठभेड़ के बाद जब आजमगढ़ के लोगो की बात नहीं सुनी गई तो उलमे काउंसिल का गठन हो गया। भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और यहां सभी के मसलों को सुनना और सुलझाया जाना चाहिए।<br /><strong>इन मुस्लिम जमातों का सियासी असर क्या होगा।</strong><br />अगर मुस्लिम जमातें आती हैं तो निश्चित तौर पर मुस्लिम मतों को धु्रवीकरण होगा। इसका फायदा दूसरे दल उठाएंगे। इससे मुसलमानों को फायदा नहीं हाने वाला।<br /><strong>आपने सपा क्यों छोड़ी।</strong><br />मै यह बात साफ कर दूं कि सपा को मैंने नही बल्कि सपा ने मुझे छोडा है। जब मुझे यह न्यूज चैनलों और समाचार पत्रों से खबर मिली कि मेरा टिकट कट गया तो मैं अपने लोकसभा क्षेत्र के लोगों से राय लेने के बाद कांग्रेस में शामिल हुआ। कांग्रेस मेरा पुराना घर है।<br /><strong>कल्याण और मुलायम की दोस्ती का क्या असर होगा।</strong><br />देश में मुसलमानों के अंदर बाबरी मस्जिद का दर्द हमेशा रहेगा और कल्याण को देखने के बाद वह दर्द ताजा हो उठेगा। कल्याण सिंह के सपा के साथ आ जाने से मुलायम को मुस्लिम मतों के नजरिए से भारी नुकसान होने वाला है।<br /></div>Avlokanhttp://www.blogger.com/profile/18431353904399972129noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7751653303074957854.post-8270129387653103692009-04-25T09:39:00.000-07:002009-04-25T09:46:39.212-07:00आजमगढ़ का कामरान<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiASEg4fH0QPIYvsXnlT_QAoWM4mfVhyphenhyphennAqvIYKeic9TycxjagckuAYEl4AnWpJC8FtpkpWIaQgGWmKCgTsWzs6Hfd4hF8fi_jEFKg_exLhU7iDU6ClQQ8NTouODVBvTQLpPBe3eWkDaB6m/s1600-h/kamran1.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5328671242968625522" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 154px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiASEg4fH0QPIYvsXnlT_QAoWM4mfVhyphenhyphennAqvIYKeic9TycxjagckuAYEl4AnWpJC8FtpkpWIaQgGWmKCgTsWzs6Hfd4hF8fi_jEFKg_exLhU7iDU6ClQQ8NTouODVBvTQLpPBe3eWkDaB6m/s320/kamran1.jpg" border="0" /></a><br /><div>मैं जब आजमगढ़ में था तब वहां नाइट मैच देखने का बहुत शौक था। वहां मेरे कस्बे में नाइट मैच तीन दिनों तक चलता था। हम लोग तीनों दिन यह मैच रात भर जागकर देखते थे। उसी दौरान वहां नवादा गांव की टीम मैच खेलने आया करते थी। उसी टीम में एक गंेदबाज था कामरान खान।<br />आज वही कामरान महान गेंदबाज शेन वार्न की आंखों के तारे हो गए हैं। कामरान की कामयाबी पर मैं सिर्फ इसलिए नहीं खुश हूं कि वह आजमगढ़ के हैं बल्कि मेरी खुशी इसलिए भी ज्यादा है कि वह मुफलिसी से निकलकर इस मुकाम तक पहुंचे हैं। उन्हें देखकर तब और भी अच्छा लगता है जब मैं यह सोचता हूं कि मेरे कस्बे के निकट एक खेत में बनी पिच से निकलकर एक लड़का डरबन के मैदान तक जा पहुंचा है।<br />वैसे आईपीएल की राजस्थान राॅयल्स टीम में कामरान का खेलना किसी सपने के सच होने जैसा जरूर है। मैं आजमगढ़ की सरजमीं पर पैदा हुआ हंू इसलिए पूरे यकीन के साथ कह सकता हूं कि वहां हजारों ऐसे लड़के हैं जिनकी आंखों में कामरान जैसे ही सपने पल रहे हैं। अब कामरान ने उनके सपने देखने की ताकत को और भी मजबूत बना दिया है।<br />मुझे हमेशा इस बात की तकलीफ रहती कि यहां बहुत सारे लोगों के मन में आजमगढ़ की छवि सिर्फ आतंकवाद और अपराध के ईर्द-गिर्द है। कामरान जैसे नौजवानों ने कई मायनों में उस छवि को झुठलाया है और लोगों को मेरे जिले के बारे में फिर से सोचने पर मजबूर किया है। </div>Avlokanhttp://www.blogger.com/profile/18431353904399972129noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7751653303074957854.post-64611417615108175102009-04-22T10:20:00.000-07:002009-04-22T10:29:50.069-07:00चावेज की नयी चाहत<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiJa6jys6_8gmgsLEctg9FnF67ZdiWBFFIbRikoxUv-L_zB5LR9Xpsdcqmp94AmErwvhFQ7m-00QVrL5SG6uA396U0a3osnUpGECH4s_EyoSiWeNPu6mpf08Tq2UBTifYeflOAa8XhfLSEr/s1600-h/chavej.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5327567958996756434" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 210px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiJa6jys6_8gmgsLEctg9FnF67ZdiWBFFIbRikoxUv-L_zB5LR9Xpsdcqmp94AmErwvhFQ7m-00QVrL5SG6uA396U0a3osnUpGECH4s_EyoSiWeNPu6mpf08Tq2UBTifYeflOAa8XhfLSEr/s320/chavej.jpg" border="0" /></a><br /><div></div>वेनेजुएला के राष्ट्रपति हुगो चावेज अमेरिका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बराक ओबामा के दीवाने हो<span class=""> हैं</span>. ऐसा लगता ही नहीं की यह वाही चावेज हैं जो कुछ महीनो पहले तक अमेरिका और उसकी नीतिओं को जमकर कोसते थे. हाँ यह बात भी सही है की चावेज साहब उस वक्त के अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश पर ज्यादा बरसते थे.<br />सवाल यह है की ओबामा के आने से अमेरिका की उन नीतियों में कितना बदलाव आया है जिन पर चवेज आग बबूला रहते थे. अगर गौर करें तो अमेरिका और बुश की विदेश नीति को लेकर ही चावेज ज्यादा आक्रोशित थे. इसके साथ ही एक बात और अहम् है की ओबामा के समय में अमेरिका की विदेश निति में कोई चमत्कारिक बदलाव नहीं है. फिर चावेज को ओबामा इतना क्योँ सुहाने लगे हैं?<br />क्या चावेज की बुश से कोई व्यक्तिगत खुन्नस थी या फिर ओबामा के व्यक्तित्व पर वह कुछ इस कदर निहाल हो गए हैं की उनको अमेरिका दिल के करीब लगने लगा है. अब कोई हैरत न होगी की चावेज का व्हाइट हाउस तक आना जाना धड़ल्ले से शुरू हो जाये. हम तो यही कहेंगे की सलामत रहे यह नया दोस्ताना..Avlokanhttp://www.blogger.com/profile/18431353904399972129noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7751653303074957854.post-59766888351110805362009-04-17T09:50:00.000-07:002009-04-17T10:04:19.824-07:00फिर कब आएंगे<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiQbfg_E74fb7LFZyRofV2Q3s9GOK6VtFY_cENlhyphenhyphenHb1hvfv_EebVFaNOa-YiCLPofXSIq9llfIvM3VElC4CwO_NzKARMMqzBiITjokRqVT-lcTooU9CLvwou7oBnVr3nmSKc2S2OCeyvJj/s1600-h/farmers.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5325707150201349122" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 242px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiQbfg_E74fb7LFZyRofV2Q3s9GOK6VtFY_cENlhyphenhyphenHb1hvfv_EebVFaNOa-YiCLPofXSIq9llfIvM3VElC4CwO_NzKARMMqzBiITjokRqVT-lcTooU9CLvwou7oBnVr3nmSKc2S2OCeyvJj/s320/farmers.jpg" border="0" /></a><br /><div></div><br /><p>चिट्टी पत्री ख़तो किताबत के मौसम </p><br /><p>फिर कब आएंगे?</p><br /><p>रब्बा जाने,</p><br /><p>सही इबादत के कब मौसम </p><br /><p>फिर कब आएंगे?</p><br /><p>चेहरे झुलस गये क़ौमों के लू लपटों में</p><br /><p>गंध चिरायंध की आती छपती रपटों में</p><br /><p>युद्धक्षेत्र से क्या कम है यह मुल्क हमारा</p><br /><p>इससे बदतर</p><br /><p>किसी कयामत के मौसम</p><br /><p>फिर कब आएंगे?</p><br /><p>हवालात सी रातें दिन कारागारों से</p><br /><p>रक्षक घिरे हुए चोरों से बटमारों से</p><br /><p>बंद पड़ी इजलास</p><br /><p>ज़मानत के मौसम </p><br /><p>फिर कब आएंगे?</p><br /><p>ब्याह सगाई बिछोह मिलन के अवसर चूके</p><br /><p>फसलें चरे जा रहे पशु हम मात्र बिजूके</p><br /><p>लगा अंगूठा कटवा बैठे नाम खेत से</p><br /><p>जीने से भी बड़ी</p><br /><p>शहादत के मौसम</p><br /><p>फिर कब आएंगे? </p><br /><p>-- नईम</p><br /><p>सौजन्य :<a href="http://www.anubhuti-hindi.org/">http://www.anubhuti-hindi.org/</a><br /></p>Avlokanhttp://www.blogger.com/profile/18431353904399972129noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-7751653303074957854.post-38937521762725251422009-04-09T10:32:00.000-07:002009-04-09T10:34:18.114-07:00जरनैल के जूते का असर<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiNgZSkRcS27ZNRQQe1A5ziRaHq5U6kNqCpdCacUyMhRoyjO45fdQ2ekKMkfTxgpxteukPTrnsKi1qmm9zP8omM1QGpV1_ZtINeOd6hjK_KKddHY8qEsnoN1PzQ32agFPjWYaK3iKwFVBDE/s1600-h/chidambaram.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5322746277117836034" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 222px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiNgZSkRcS27ZNRQQe1A5ziRaHq5U6kNqCpdCacUyMhRoyjO45fdQ2ekKMkfTxgpxteukPTrnsKi1qmm9zP8omM1QGpV1_ZtINeOd6hjK_KKddHY8qEsnoN1PzQ32agFPjWYaK3iKwFVBDE/s320/chidambaram.jpg" border="0" /></a><br /><div>एक निजी अखबार के पत्रकार जरनैल सिंह ने चिदंबरम साहब पर जूता क्या फेंक दिया देश की सियासत में हड़कंप मच गई। कांग्रेस पार्टी पर इस जूते का असर कुछ ज्यादा ही देखा गया। पार्टी जरनैल के जूते का संकेत समझ गई कि यह जूता चिदंबरम साहब पर नहीं बल्कि जगदीश टाइटलर और सज्जन कुमार पर फेंका गया था।<br />टाइटलर और कुमार का टिकट काटकर पार्टी ने जूते के असर को पुख्ता कर दिया है। लोग कुछ भी कहें एक पत्रकार के जूते ने अपना दम दिखा ही दिया। </div>Avlokanhttp://www.blogger.com/profile/18431353904399972129noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7751653303074957854.post-6970265768695408672009-03-18T09:51:00.000-07:002009-03-18T10:04:03.029-07:00वरुण गांधी का 'विषैलापन'<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjvLK_z8oid-vo0hkFID5bq1MWOaSpNsf1FcntR26bC9jT8j3Cx_aVcDjoRd8cAyzgLMhHSzj1NFarj1F9Czx8Pd9iU1mL6wkytTInvnJDwXNyOcmKh8LGVHqiMivrIBX3qcHuy5Rk9Uef7/s1600-h/varun.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5314572442310858050" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 192px; CURSOR: hand; HEIGHT: 320px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjvLK_z8oid-vo0hkFID5bq1MWOaSpNsf1FcntR26bC9jT8j3Cx_aVcDjoRd8cAyzgLMhHSzj1NFarj1F9Czx8Pd9iU1mL6wkytTInvnJDwXNyOcmKh8LGVHqiMivrIBX3qcHuy5Rk9Uef7/s320/varun.jpg" border="0" /></a><br /><div>वरूण गांधी से जुड़े सीडी प्रकरण पर गौर करें तो इस पर किसी को भी ताज्जुब नहीं करना चहिए। हां थोड़ा आश्चर्य इस बात है कि गांधी-नेहरु परिवार से जुड़ा व्यक्ति इस जुबान में बोल रहा है। वैसे भी वरुण आज जिस सियासी पार्टी में हैं उसका इस तरह की भाषा से पुराना नाता रहा है।<br />बात अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी की नहीं हो रही है। यहां बात उनकी पार्टी यानी भारतीय जनता पार्टी की हो रही है। कभी उत्तर प्रदेश में भाजपा के महारथी रहे कल्याण सिंह की भाषा भी वरुण वाली भाषा थी। नरेंद्र मोदी की भाषा का गवाह भी पूरा देश है।<br />वैसे यह सवाल बड़ा है कि वरुण को अचानक इतने कट्टर हिंदुत्व की याद कैसे आ गई। इसके पीछे वजहें दो हैं। पहली यह कि वरुण को अपना सियासी ग्राफ बढ़ाना है और दूसरी बात यह कि इसी तरह के हथखंडो से उनकी पार्टी भी फायदा उठाना चाहती है। लेकिन सवाल यह है कि क्या वरुण को अपने मकसद में कामयाबी मिल पाएगी।<br />कहीं ऐसा तो नहीं कि उनकी यह तल्ख भाषा वाली मेहनत जाया चली जाए। संभावना यह भी है कि उनकी इस जुबान के असल सूत्रधार कहीं उन्हें बीच भंवर न छोड़ दें। ये बातें तो खुद वरुण को ही सोंचनी पड़ेंगी।</div>Avlokanhttp://www.blogger.com/profile/18431353904399972129noreply@blogger.com1