Tuesday, August 4, 2009
निरूपमा जी आप मेनन मत बनिएगा !
शिवशंकर मेनन अब अतीत की बात हो चुके हैं। उनकी जगह अब निरूपमा राव ले चुकी हैं। अब निरूपमा के सामने कई चुनौतियां हैं जो उनका कड़ा और माकूल इम्तहान लेंगी। शायद वह वैसी एक कोई गलती नहीं होनें देंगी जो मेनन साहब के कार्यकाल के आखिरी दिनों में हो गई।
मैं मेनन साहब की काबिलियत और उनकी निष्ठा पर कोई सवाल खड़े नहीं कर रहा। वह एक काबिल अधिकारी रहे हैं जिनके लिए हमारे दिल में आदर है। उन्होंने कई ऐसी कामयाबियां भी भारत के झोली में डालीं जिनकी हमारी विदेश नीति को भारी दरकार थी। मसलन कि ऐतिहासिक परमाणु करार के साथ उनका नाम इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज हो गया।
परंतु मुझे डर इस बात का है कि कहीं इतिहास उनको एक खलनायक न मान बैठे। शर्म-ंअल-शेख में हम जो गलती कर बैठे उसकी उम्मीद मुझे इसलिए नहीं थी कि मेनन साहब जैसे अधिकारी की मौजूदगी में हमारी विदेश नीति तो जरा भी लचर नहीं हो सकती। परंतु अफसोस कि ऐसा नहीं हुआ। बलूचिस्तान के रूप में ऐसा बिंदु साझा बयान में शामिल किया गया है जो पाकिस्तान का हमारे खिलाफ एक हथकंडा है। डर इस बात का है कि कहीं बलूचिस्तान नाम का एक कलंक हमारे पाक दामन में न लग जाए। खुदा न करे, पर अगर ऐसा हुआ तो अफसोस है कि मनमोहन के साथ मेनन साहब भी खलनायक के रूप में याद किए जाएंगे।
अब नई विदेश सचिव निरूपमा से उम्मीद यही करतें हैं कि वह मेनन साहब की गलती कभी नहीं दोहराएंगी। ऐसा उम्मीद रखना वाजिब भी हैं क्योंकि दक्षिण एशिया में निरूपमा को काम करने का लंबा अनुभव है। उनसे एक उम्मीद यह भी होगी कि उनके रहते ही शर्म-ंअल-शेख की गलती भूल को हमेशा के लिए खत्म कर दिया जाएगा।
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