Tuesday, June 23, 2009

सरकोजी साहब क्या बोल देते हैं ........


श्रीमान सरकोजी जी आप फ्रांस के राष्ट्रपति हैं इसलिए आपको यह कहने का हक जरूर है कि आप अपने मुल्क में किसका स्वागत करेंगे और किसका नहीं. लेकिन किसी की मजहबी सीमाओं में बे रोक-टोक दखल देने का अधिकार तो आपको कतई नहीं है.

आप को बुर्के पर अपनी नेक राय देने से पहले थोडा सोचना जरूर चाहिए था, जैसा की आपसे उम्मीद भी की जाती है. पर आप तो बोले तो बोलते ही रह गए. मैं आपकी इस नेक नियति पर सवाल खडा नहीं कर रहा कि आपकी बात में मुस्लिम औरतों की तकलीफों के प्रति छुपा एक भाव था जिसे आपने जाहिर किया. आपकी यह नीयत कितनी नेक थी कुछ लोग इस भी सवाल खड़े कर रहे हैं.
चलिए मन लेते हैं कि औरतों का बुरका पहनना उनके पिछडेपन और उनके एक तरह के घुटन में रहने की निशानी है. पर क्या आप यह कहना चाहते हैं कि सारी औरतें आपकी मिसेज यानी कार्ला ब्रूनी की पोशाक पहनने लगे तो वे आधुनिक हो जायेंगी. सरकोजी साहब आपका तर्क बहुत अटपटा लगता है.
मैं तो यही जनता हूँ कि पोशाक से किसी इन्सान के विकसित होने का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. जनाब मेरे मुल्क के प्रधानमंत्री पगडी पहनते हैं. आपको यह भी बता दूं कि मेरे देश के गृह मंत्री पी. चिदंबरम लूंगी पहनते हैं. शायद आप भी इन दोनों को जानते होंगे. कहीं आप इन दोनों बेहद पढ़े-लिखे लोगों को जाहिल मत बोल दीजियेगा.
हम तो आपको यही सलाह देंगे कि आप जरा अपने सेकुलरिज्म और इंसानी आजादी के पहलुओं पर चिंतन करिए.