वरूण गांधी से जुड़े सीडी प्रकरण पर गौर करें तो इस पर किसी को भी ताज्जुब नहीं करना चहिए। हां थोड़ा आश्चर्य इस बात है कि गांधी-नेहरु परिवार से जुड़ा व्यक्ति इस जुबान में बोल रहा है। वैसे भी वरुण आज जिस सियासी पार्टी में हैं उसका इस तरह की भाषा से पुराना नाता रहा है।
बात अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी की नहीं हो रही है। यहां बात उनकी पार्टी यानी भारतीय जनता पार्टी की हो रही है। कभी उत्तर प्रदेश में भाजपा के महारथी रहे कल्याण सिंह की भाषा भी वरुण वाली भाषा थी। नरेंद्र मोदी की भाषा का गवाह भी पूरा देश है।
वैसे यह सवाल बड़ा है कि वरुण को अचानक इतने कट्टर हिंदुत्व की याद कैसे आ गई। इसके पीछे वजहें दो हैं। पहली यह कि वरुण को अपना सियासी ग्राफ बढ़ाना है और दूसरी बात यह कि इसी तरह के हथखंडो से उनकी पार्टी भी फायदा उठाना चाहती है। लेकिन सवाल यह है कि क्या वरुण को अपने मकसद में कामयाबी मिल पाएगी।
कहीं ऐसा तो नहीं कि उनकी यह तल्ख भाषा वाली मेहनत जाया चली जाए। संभावना यह भी है कि उनकी इस जुबान के असल सूत्रधार कहीं उन्हें बीच भंवर न छोड़ दें। ये बातें तो खुद वरुण को ही सोंचनी पड़ेंगी।
बात अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी की नहीं हो रही है। यहां बात उनकी पार्टी यानी भारतीय जनता पार्टी की हो रही है। कभी उत्तर प्रदेश में भाजपा के महारथी रहे कल्याण सिंह की भाषा भी वरुण वाली भाषा थी। नरेंद्र मोदी की भाषा का गवाह भी पूरा देश है।
वैसे यह सवाल बड़ा है कि वरुण को अचानक इतने कट्टर हिंदुत्व की याद कैसे आ गई। इसके पीछे वजहें दो हैं। पहली यह कि वरुण को अपना सियासी ग्राफ बढ़ाना है और दूसरी बात यह कि इसी तरह के हथखंडो से उनकी पार्टी भी फायदा उठाना चाहती है। लेकिन सवाल यह है कि क्या वरुण को अपने मकसद में कामयाबी मिल पाएगी।
कहीं ऐसा तो नहीं कि उनकी यह तल्ख भाषा वाली मेहनत जाया चली जाए। संभावना यह भी है कि उनकी इस जुबान के असल सूत्रधार कहीं उन्हें बीच भंवर न छोड़ दें। ये बातें तो खुद वरुण को ही सोंचनी पड़ेंगी।