Friday, March 19, 2010

जकात से जागी एक गाँव की किस्मत

पवित्र कुरान में जकात (दान) के महत्व से प्रेरित होकर उत्तर प्रदेश के एक गांव के मुसलमानों ने दान के माध्यम से ही गांव का कायाकल्प कर दिया है। चाहे सड़कों का निर्माण हो या हैंडपंप की व्यवस्था, बिजली के खंभे लगाना हो या स्कूलों की स्थापना, ये सब कुछ आजमगढ़ जिले के सिराजपुर गांव के लोगों ने जकात के माध्यम से कर दिखाया है।
गांव के मोहम्मद हलीम ने कहा कि अगर हम लोग राजनेताओं और जनप्रतिनिधियों के चक्कर काटते तो गांव में विकास के नाम पर कुछ भी संभव नहीं होता। चंदे के जरिए ही हमने गांव में सड़कों का निर्माण, पेयजल के लिए हैंडपंप, बच्चों के लिए स्कूल सहित अन्य बुनियादी जनसुविधाएं दुरुस्त की है।
बुनियादी जनसुविधाओं के बाद सिराजपुर गांव के लोग अब दान के माध्यम से ही एक पुल का निर्माण कर रहे हैं, जिसका निर्माण हो जाने से आजमगढ़ शहर व अन्य कस्बों से गांव का आवागमन सुगम हो जाएगा।
गांव के पूर्व प्रधान एहसानुल हक कहते हैं कि हम लोग चंदे से धन एकत्रित कर तमसा नदी पर एक पुल का निर्माण कर रहे हैं। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इस पुल के निर्माण के लिए हमने करीब 60 लाख रुपये एकत्र कर लिए हैं।
उन्होंने कहा कि पुल के निर्माण का काम शुरू हो गया है। हम लोग उस दिन का इंतजार कर रहे हैं, जिस दिन यह पुल बनकर तैयार हो जाएगा।
ग्रामीणों के मुताबिक करीब 30 मीटर लंबे इस पुल का निर्माण हो जाने के बाद गांव जिला मुख्यालय के साथ-साथ तमसा नदी के उस पार के महत्वपूर्ण कस्बों से सीधा जुड़ जाएगा और आवागमन सुगम हो जाएगा।
ग्रामीण इश्तियाक अहमद कहते हैं कि व्यापार की दृष्टि से भी यह पुल बहुत महत्वपूर्ण होगा। खासकर किसानों और पटरी बाजार पर दुकानें लगाने वाले छोटे व्यापारियों के लिए, जिन्हें अपनी सब्जियों और माल को आजमगढ़ शहर ले जाने के लिए 35 किलोमीटर जाना पड़ता है। पुल बन जाने के बाद उन्हें 15 किलोमीटर की दूरी कम हो जाएगी।
ग्रामीणों के मुताबिक करीब 15 साल पहले गांव की मजलिस में हिस्सा लेने आए मुस्लिम धर्मगुरुओं के सुझ्झाव पर उन्होंने जकात से धन एकत्र कर पीने का पानी, सड़क और स्कूल जैसी बुनियादी सुविधाओं की पहल की थी।
46 वर्षीय ग्रामीण अब्दुल हन्नान कहते हैं कि हैदराबाद, लखनऊ व अन्य हिस्सों से आने वाले धर्मगुरुओं को खस्ताहाल टूटी सड़कों की वजह से हमारे गांव पहुंचने में बहुत दिक्कतों के सामना करना पड़ा। मजलिस के दौरान उन्होंने ग्रामीणों से जकात के जरिए अपने गांव को खुद विकसित करने की सलाह दी।
धर्मगुरुओं की सलाह मानकर ग्रामीणों ने चंदा एकत्र कर सबसे पहले एक टूटी सड़क की मरम्मत की। धीरे-धीरे जकात से ही गांव का कायाकल्प हो गया।
3000 की आबादी वाले मुस्लिम बाहुल्य सिराजपुर गांव के लगभग हर परिवार का कोई न कोई सदस्य मुंबई व देश के अन्य शहरों में नौकरी या कोई व्यवसाय करता है। गांव के कुछ परिवारों के लोग तो दुबई में भी नौकरियां करते हैं। इसिलए सभी लोग स्वेच्छा से गांव के विकास में चंदा देते हैं।
IANS

9 comments:

ravishndtv said...

पब्लिक एजेंडा के अजय ने भी यह जानकारी दी थी। लेकिन जकात वाली बात नहीं थी। सरपंच का नंबर मिल सकता है क्या..सोचता हूं वहां जाकर एक रिपोर्ट बना लाऊं..क्या ख्याल है..

benamee said...

They have done a good job, certainly far better than any Zehadi.

Kudos!

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

जकात और शरीयत से ही भारत में सम्पूर्ण बदलाव हो सकता है, जिसकी शुरूआत आजमगढ़ से हो चुकी है. संजरपुर. आजमगढ़.

Mohammed Umar Kairanvi said...

अपनी जमा व आमदनी से 2.5 प्रतिशत वार्षिक मुसलमान को देना होता है इस पर अमल तो हम भी करते आये थे लेकिन इससे ऐसे भी कायापल्‍ट हो सकती है यह आपकी पोस्‍ट से जाना, बेहद उमदा जानकारी, बेहद खुश कर देने वाली खबर, अल्‍लाह करे हमारे भाई अपनी जकात को इस तरह ही खर्च करें जिसकी हमारे देश में बहुत ज़रूरत है

Taarkeshwar Giri said...

Ek achhi pahel hai , lekin ye bhi to pata kariye ki kya sirf musalmano ne hi sahyog kiya hai. kisi aur dharm ke logo ko kya us pul ki jarurat nahi hia. apni puri report de . Jatigat ya dharm se hat kar ke report de. Ek Bhartiya ki tarah.

Ap ye bhi kah sakte the ki us gaon ke logo ne milkar ke ye sahyog diya hai. lekin aap ne sirf Kuran ka sahara liya hai. Sabhi Samaj ko sath main le kar ke chaliye.

شہروز said...

भाई प्रेरणा स्पद इस पोस्ट के लिए ढेरों मुबारक बाद और गाँव के लोगों को सलाम!!

Saleem Khan said...

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