Wednesday, June 2, 2010
एक और गुड़िया!
मुजफ्फरनगर। कभी दो पतियों के बीच फंसी गुड़िया की कहानी मीडिया की सुर्खियां बनी थी। आज कुछ ऐसी ही दास्तां मुजफ्फरनगर की एक महिला रोशन की भी है, जिसके सामने अपने दो शौहरों में एक को चुनने का धर्मसंकट था। पंचायत और धर्मगुरुओं ने उसे पहले पति के साथ रहने की हिदायत दी और इसको मानते हुए रोशन अपने पहले पति के पास लौट गई।
यह मामला यहां के मीरापुर कस्बे का है। यहां के निवासी सिराजुद्दीन की पुत्री रोशन का निकाह 11 वर्ष पहले इरशाद के साथ हुआ था। इससे रोशन को दो बेटियां यासमीन व नरगिस हुई। करीब पांच वर्ष बाद इरशाद अचानक लापता हो गया था। काफी खोजबीन के बाद भी जब उसका कोई सुराग नही लगा तो उसके सास-ससुर अपनी बहू व पोतियों को मायके में छोड़ चले गए। रोशन के सुसराल वालों को इस बात आशंका थी कि उनका बेटे की मौत हो गई है।
रोशन के मुश्किलों का सिलसिला यही नहीं थमा। मायके लौटने के कुछ दिनों बाद उसके पिता सिराजुद्दीन की भी मौत हो गई थी। इसके बाद कुछ स्थानीय लोगों ने इरशाद को लापता मानकर उसका दूसरा निकाह सहारनपुर के गगोह के गफ्फार के साथ कर दिया।
अचानक उसकी वैवाहिक जिंदगी मे नया मोड़ उस वक्त आ गया जब रोशन के भाई आस मोहम्मद को पता चला कि उसका बहनोई इरशाद जीवित है तथा मुरादाबाद के संभल क्षेत्र के आदमपुर गांव मे रह रहा है। इस खुलासे के बाद घर वाले उसे वहां से वापस लेकर आए। उसने बताया कि वह पारिवारिक झगड़े व तनाव के कारण घर से चला गया था।
इस मामले पर मीरापुर मस्जिद के मुफ्ती अरशद ने ?दारूल इफ्ता? से फतवा लिया था। इसमें मौलाना बदरूल जमां का कहना था कि रोशन पर उसके पहले शौहर का ही हक बनता है। इस फैसले के बाद रविवार को हुई पंचायत में शामिल लोगों ने फोन से रोशन के दूसरे पति गफ्फार से बातचीत कर उसके पहले पति के पास भेजने की सहमति ले ली।
पंचायत के फैसले के बाद उसे इरशाद के पास भेजा गया है। गफ्फार ने अपने लिए कोई फतवा या आपत्ति नहीं मांगा है। बदरूल जमा की ओर से दिए गए फतवे के अनुसार इस्लाम में सात साल तक लापता होने पर ही किसी औरत का दूसरा निकाह जायज होता है। रोशन लगभग ढाई साल से मायके मे है और उसे ?इद्दत? जरूरी नहीं है। ऐसे में गफ्फार से उसका निकाह जायज नहीं है।
Tuesday, May 25, 2010
एक प्रेम कहानी ऐसी भी..
कहते हैं कि प्यार सभी बंधनों और सीमाओं से परे है। कनाडा में शुरू हुई एक प्रेम कहानी के सुखद अंत ने एक बार फिर इसे सही साबित किया है। इस प्रेम कहानी में इंटरनेट का किरदार बेहद अहम रहा।
यह कहानी कनाडाई मूल की मुस्लिम युवती नाजिया काजी और भारतीय मूल के युवक बिजोर्न सिंहल की है। इन दोनों के प्यार की सुखद परणिति से पहले तमाम ऐसी रुकावटें और दिक्कते आईं जो अक्सर बॉलीवुड की फिल्मों में देखने को मिलती हैं।
नाजिया और बिजोर्न के बीच कनाडा में पढ़ाई के दौरान प्यार परवान चढ़ा लेकिन जल्द ही इनके प्यार को मानो किसी की नजर लग गई। नाजिया के वालिद काजी मलिक अब्दुल गफ्फार अपनी बेटी के प्यार के रास्ते में आ गए और उसे पूरे तीन साल तक घर में 'बंधक' बनाकर रखा।
गफ्फार सऊदी अरब में कार्यरत हैं इसलिए वहां के कानून की मदद से भी वह अपनी बेटी पर बंदिश लगाने में कामयाब रहे। परंतु नाजिया ने इंटरनेट के जरिए अपनी मदद की गुहार लगाई और कनाडा में उसके दोस्तो ने भी उसके समर्थन में अभियान छेड़ दिया।
नाजिया के जज्बे और दोस्तों के साथ से उसकी दिक्कतों को मीडिया ने प्रमुखता दी और देखते ही देखते यह प्रेम कहानी कनाडा और सऊदी अरब के अखबारों में छा गई। इसके बाद मानवाधिकार संगठन भी उसके समर्थन में आगे आए।
बिजोर्न और नाजिया की सबसे बड़ी जीत उस समय हुई जब इस साल के शुरुआत में दोनों परिवार शादी के लिए राजी हो गए और पिछले सप्ताह यह प्रेमी जोड़ा दुबई में विवाह के पवित्र बंधन में बंध गया।
शादी के बाद 24 साल की नाजिया ने कहा, "अब मैं अपने पिता को माफ कर चुकी हूं। वह मुझे खुश देखना चाहते हैं। मेरे माता-पिता मुझे घर बसाते देखना चाहते थे। आज सभी खुश हैं।"
उधर, 29 साल के बिजोर्न का कहना है कि अब वह अपने ससुर के साथ सुलह करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि नाजिया से शादी करने के बाद उन्हें बहुत राहत मिली है।
सौ IANS
Monday, May 3, 2010
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में खुफिया शाखा!
अलीगढ़ : अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) से जुड़ी एक राज की बात अब यहां हर जुबान पर सुनी जा सकती है कि एएमयू में एक ‘खुफिया शाखा’ है जो छात्रों और शिक्षकों के हर कदम पर पैनी नजर रखती है। यद्यपि विश्वविद्यालय प्रशासन ऐसी किसी भी इकाई के संचालन की बात खारिज करता है।
एएमयू प्रशासन इतना जरूर स्वीकार करता है, "विश्वविद्यालय में आने वाले बाहरी और असामाजिक तत्वों पर नजर रखी जाती है।"
वैसे हाल के कुछ घटनाओं की वजह से ‘स्थानीय खुफिया इकाई’ (एलआईयू) एक फिर खबरों में आ गयी है। पिछले दिनों विश्विद्यालय के कथित समलैंगिक शिक्षक श्रीनिवास रामाचंद्रा से जुड़ी घटना के बाद एलआईयू फिर से चर्चा में आ गया। कुछ लोगों ने इस शिक्षक के घर में कैमरा लगा दिया और फिर उनकी एक फिल्म बना दी। कुछ दिनों बाद ही यह शिक्षक अपने घर में मृत पाए गए।
दर्शनशास्त्र विभाग के शिक्षक तारिक इस्लाम का कहना है, "एक शैक्षणिक संस्थान में इस तरह की खुफिया एजेंसी का संचालन करने का तर्क मैं नहीं समझ पाता। सरकार को छोड़ किसी दूसरे संस्थान को दूसरों की जासूसी करने का हक नहीं है।"
इस मामले पर केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने बताया, "विश्वविद्यालय में कानून एवं व्यवस्था में बरकरार रखने के लिए कुलपति के पास किसी भी समिति या एजेंसी को गठित करने का अधिकार है। अगर संबंधित एजेंसी का किसी तरह से दुरुपयोग होता है तो इसके लिए कुलपति जरूर जिम्मेदार होगा।"
हाल ही में एम.फिल के एक छात्र अफाक अहमद को निलंबित कर दिया गया। उस पर कुलपति पी.के. अब्दुल अजीज को धमकी भरा पत्र भेजने का आरोप था। इस मामले में भी आरोप इसी खुफिया शाखा पर लगे हैं। इस छात्र का आरोप है कि खुफिया शाखा के लोगों ने कुलपति को भजे जाने वाले पत्र पर छात्रावास में उसके जबरन हस्ताक्षर लिए।
खुफिया शाखा से जुड़े सवाल पर विश्वविद्यालय के प्रॉक्टर जुबैर खान ने कहा, "हमारे यहां निगरानी करने वाली एक एजेंसी है जो बाहरी और असामाजिक तत्वों पर नजर रखती है।"
एएमयू प्रशासन भले ही कुछ दावा कर रहा हो लेकिन सूचना के अधिकार के तहत दायर एक याचिका के जवाब में खुद उसने (विश्वविद्यालय) ने एलआईयू की मौजूदगी की बात कबूल की है।
Sunday, May 2, 2010
निरुपमा को न्याय चाहिए
निरुपमा के लिए न्याय पिटीशन पर दस्तखत करें। निरुपमा की हत्या इसलिए कर दी गई क्योंकि वह अपनी मर्जी से शादी करना चाहती थी। वर्णव्यवस्था के पुजारियों ने इस अपराध के लिए उसे मौत की सजा दे डाली। पिटीशन पर क्लिक करें।
Friday, April 9, 2010
सानिया तुमसे शिकायत है..
वैसे तुम्हे कौर्ट में देखकर ख़ुशी सिर्फ मुझे ही नहीं बल्कि मेरे जैसे एक अरब से ज्यादा भारतीयों को भी हुई होगी. लेकिन सानिया बीते कुछ दिनों में ऐसा लगा कि तुम हम सबकी शर्मिंदगी की वजह बन रही हो. ऐसा नहीं कि शोएब या किसी पाकिस्तानी से शादी करने के तुम्हारे फैसले से हमें किसी तरह का ऐतराज़ है. तुम्हे अपनी जिन्दगी के हर फैसले करने का हक़ बिलकुल है. पर किसी महिला के जख्म कुरेदकर तुम्हे अपनी खुशियाँ तलाशने का हक़ बिलकुल नहीं है.
अगर तुम्हे पता था कि शोएब ने आयशा से शादी की थी तो तुम शोएब के फरेब की भागीदार क्यों बनी? तुमने क्यों मीडिया के सामने आकर अपनी सहेली और हमवतन आयशा के चरित्र को कटघरे में खड़ा किया? क्या तुम सब जानते हुए भी अनजान थी? अगर सब जानती थी तो तुम्हारे उस दावे का क्या कि 'हम इज्जतदार परिवार से ताल्लुक रखते हैं'.
मैडम सानिया अब आप बाहर आकार शोएब की पाकीजगी का बखान क्यों नहीं करती? क्या आपने अब मान लिया कि आप शहजादा शोएब कि दूसरी बेगम हैं? अब क्या करेंगी प्यार की मजबूरी क्या न करवा दे. खैर हमारी शिकायत पर आपको गौर करना चाहिए. शादी के लिए मुबारकबाद. दुआ करेंगे कि आयशा की दास्ताँ आपके साथ न दोहराई जाये.
Friday, March 19, 2010
जकात से जागी एक गाँव की किस्मत
गांव के मोहम्मद हलीम ने कहा कि अगर हम लोग राजनेताओं और जनप्रतिनिधियों के चक्कर काटते तो गांव में विकास के नाम पर कुछ भी संभव नहीं होता। चंदे के जरिए ही हमने गांव में सड़कों का निर्माण, पेयजल के लिए हैंडपंप, बच्चों के लिए स्कूल सहित अन्य बुनियादी जनसुविधाएं दुरुस्त की है।
बुनियादी जनसुविधाओं के बाद सिराजपुर गांव के लोग अब दान के माध्यम से ही एक पुल का निर्माण कर रहे हैं, जिसका निर्माण हो जाने से आजमगढ़ शहर व अन्य कस्बों से गांव का आवागमन सुगम हो जाएगा।
गांव के पूर्व प्रधान एहसानुल हक कहते हैं कि हम लोग चंदे से धन एकत्रित कर तमसा नदी पर एक पुल का निर्माण कर रहे हैं। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इस पुल के निर्माण के लिए हमने करीब 60 लाख रुपये एकत्र कर लिए हैं।
उन्होंने कहा कि पुल के निर्माण का काम शुरू हो गया है। हम लोग उस दिन का इंतजार कर रहे हैं, जिस दिन यह पुल बनकर तैयार हो जाएगा।
ग्रामीणों के मुताबिक करीब 30 मीटर लंबे इस पुल का निर्माण हो जाने के बाद गांव जिला मुख्यालय के साथ-साथ तमसा नदी के उस पार के महत्वपूर्ण कस्बों से सीधा जुड़ जाएगा और आवागमन सुगम हो जाएगा।
ग्रामीण इश्तियाक अहमद कहते हैं कि व्यापार की दृष्टि से भी यह पुल बहुत महत्वपूर्ण होगा। खासकर किसानों और पटरी बाजार पर दुकानें लगाने वाले छोटे व्यापारियों के लिए, जिन्हें अपनी सब्जियों और माल को आजमगढ़ शहर ले जाने के लिए 35 किलोमीटर जाना पड़ता है। पुल बन जाने के बाद उन्हें 15 किलोमीटर की दूरी कम हो जाएगी।
ग्रामीणों के मुताबिक करीब 15 साल पहले गांव की मजलिस में हिस्सा लेने आए मुस्लिम धर्मगुरुओं के सुझ्झाव पर उन्होंने जकात से धन एकत्र कर पीने का पानी, सड़क और स्कूल जैसी बुनियादी सुविधाओं की पहल की थी।
46 वर्षीय ग्रामीण अब्दुल हन्नान कहते हैं कि हैदराबाद, लखनऊ व अन्य हिस्सों से आने वाले धर्मगुरुओं को खस्ताहाल टूटी सड़कों की वजह से हमारे गांव पहुंचने में बहुत दिक्कतों के सामना करना पड़ा। मजलिस के दौरान उन्होंने ग्रामीणों से जकात के जरिए अपने गांव को खुद विकसित करने की सलाह दी।
धर्मगुरुओं की सलाह मानकर ग्रामीणों ने चंदा एकत्र कर सबसे पहले एक टूटी सड़क की मरम्मत की। धीरे-धीरे जकात से ही गांव का कायाकल्प हो गया।
3000 की आबादी वाले मुस्लिम बाहुल्य सिराजपुर गांव के लगभग हर परिवार का कोई न कोई सदस्य मुंबई व देश के अन्य शहरों में नौकरी या कोई व्यवसाय करता है। गांव के कुछ परिवारों के लोग तो दुबई में भी नौकरियां करते हैं। इसिलए सभी लोग स्वेच्छा से गांव के विकास में चंदा देते हैं।
IANS