Friday, February 27, 2009

मुसलमान मुख्यधारा से अलग क्यों?


अनवारूल हक


देश का आम मुसलमान पेसोपेश में है। आज से नहीं बल्कि पिछले साठ वर्षों से है। कभी उसके समर्पण का इम्तहान होता है तो कभी उसको शक के दायरे में खड़ा कर दिया जाता है। कई मौके तो ऐसे भी आते हैं जब सिर्फ और सिर्फ एक मुसलमान को ही अपने भारतीय होने की या पिफर कहें कि भारतीयता की कसौटी पर खरा उतरने की चुनौती मिलती है। इसमें वह मासूम और अपनी ही दुनिया में मशगूल मुसलमान भले ही बेकसूर हो, पर उसको कसूरवार बनाने का जुर्म हो रहा है और ऐसे जुर्म को अंजाम देने वाले भी गैर नहीं, बल्कि उन्हीं में से चंद हैं।


कोई मजहब के नाम पर, कोई जिहाद के नाम पर तो कोई किसी बाहरी ताकत की पफरमानी के नाम पर या तो खुद गुमराह हो जाता है या फिर चंद लोगों को उस रास्ते पर धकेल देता है जो केवल वतनखिलापफी की ओर जाता है। नतीजा कोई और भुगतता है। कभी-कभार तो पूरी कौम जवाबदेह हो जाती है। ऐसे मौके पर मुस्लिम लीडरशिप का असल इम्तहान होता है, लेकिन अफसोस के साथ यह कहना पड़ रहा है कि एक मुसलमान को तो अब तक अपने रहनुमाओं से नाउम्मीदी ही हाथ लगी है।मसला आतंकवाद का हो, कश्मीर का हो, देश के किसी संवेदनशील मुद्दे का हो या पिफर ऐटमी डील का हो, हर जगह मुसलमानों को अलग-थलग करने की शातिराना कोशिश होती है और नतीजतन पूरी कौम पर एक इल्जाम, वह भी देश की मुख्यधरा से अलग होने का, स्वतः ही लग जाता है।


देश के ज्यादातर मसलों पर मुसलमानों को अलग रखकर दृष्टिकोण बनाने का सिलसिला नया तो नहीं है। परंतु एक बात जरूर है कि उनको हमेशा ही देश के दूसरे समुदायों से अलग रखकर तौलने का क्रम मौजूदा दौर ज्यादा बढ़ा है।सवाल कई हैं। सबसे अहम सवाल यही है कि आखिर मुसलमान मुख्यधारा से अलग क्यों है? इसका जवाब तलाशने की कोशश तो की ही जा सकती है। महत्वपूर्ण बात यह भी है आज जब हर जगह वैश्वीकरण और आध्ुनिकता की बयार चल रही तो ऐसे में मुसलमानों के लिए कोई दूसरा मानदंड तो नहीं हो सकता और होना भी नहीं चाहिए। जिस सवाल को यहां खड़ा किया गया है, वह मजहबी तो हरगि”ा नहीं है, सियासी जरूर है। सियासी इसलिए भी है कि मुसलमान भी देश की हर लोकतांत्रिक प्रक्रिया में बराबर का भागीदार और वाजिब हकदार है।वास्तविक के धरातल पर तस्वीर दूसरी है। कई बार ऐसा होता है जब देश के मुसलमानों को बाकी देश के साथ नजर आना चाहिए, लेकिन ऐसा होता नहीं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि मुसलमानों को अलग-थलग रखने की साजिश होती है और ऐसा नजर आने लगता है कि वे देश की अवाम से अलग है।

8 comments:

Anonymous said...

हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है

अजित वडनेरकर said...

ब्लागजगत में आपका स्वागत है

अजित वडनेरकर said...

ब्लागजगत में आपका स्वागत है

हिन्दीवाणी said...

बहुत खूब। अच्छा लिखा है। वक्त निकालकर मेरे ब्लॉग पर भी आएं जनाब।

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सामयिक व विचारणीय आलेख है।

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

narayan narayan

Saleem Khan said...

आपने दुरुस्त फ़रमाया...अनवारुल जी आपका मेरे ब्लॉग पर खैर मकदम है ...

एक बात और


आपसे और उन सभी ब्लोगर्स से जो यह अक़ीदा रखते हैं कि अल्लाह एक है और मुहम्मद (स.व.) उनसके बन्दे और आखिरी पैगम्बर हैं, यह अपील है कि एक दुसरे के ब्लॉग को अपने शेड्यूल के हिसाब से रोजाना देखे और उन पर टिपण्णी करें और साथ ही एक दुसरे को प्रोत्साहित करने के साथ साथ सहयोग भी करें|

ऐसे ही कुछ ब्लॉग हैं..
रांचीहल्ला - By Nadeem Akhtar
स्वच्छ संदेश: हिन्दोस्तान की आवाज़ - by Saleem Khan
ईश्वर की पहचान - by Safat Alam
इस्‍लाम इन हिन्‍दी - by Mohammad Umar Kairanvi
इस्लामिक वेबदुनियाँ - by Mohammad Asif
अंतिम अवतार - by Mohammad Umar Kairanvi
द होली कुरआन- by Kashif Arif

(if you have some mmore blog blonging this criteria, pliz write here...thanks)
(pliz remove the word-verification)


-सलीम खान