
आज अगर हमने बापू के कुछ सामानों को अपने देश की अस्मिता औ प्रतिष्ठा से जोड दिया था तो माल्या ने उन सामानों को खरीदकर निश्चित तौर पर उस अस्मिता और प्रतिष्ठा की रक्षा की है।
जहां तक बात गांधी और माल्या के सरोकार की है तो वह एक लंबी बहस का मसला है। बात सच है कि माल्या का गांधीवाद से कोई लेना देना नहीं है लेकिन वे लोग जो गांधी और उनके वसूलों के असल अनुयायी बन रहे हैं क्या वे लोग खुद से यही सवाल करके देख सकते है। सवाल वहीं कि वे किस हद तक वे गांधीवाद से जुडे हैं।
कहने का मतलब साफ है कि गांधी की सिर्फ मौकों पर करने वाले और अपने चंद फायदों के लिए बापू के नाम का बेजा इस्तेमाल करने वालों को कोई हक नहीं है कि माल्या पर बरसें क्योंकि माल्या भी बापू के इसी देश के बाशिंदे हैं।